Fat Loss Myths To Avoid

6 Biggest Fat Loss Myths To Avoid In Hindi | छः ऐसे मिथ्स जिनके कारण आप वजन नहीं कम कर पा रहे ।

वैसे तो सैकड़ो ऐसे फिटनेस और न्यूट्रीशन के मिथ्स और भ्रान्तियाँ है, जो हमें आमतौर पर जिम्स, इंटरनेट, फिटनेस मैगजिंस और अखबारों में हमें देखने को मिलते हैं । लेकिन इस आर्टिकल में हम ऐसे प्रमुख fat loss myths पर चर्चा करेंगे, जो आपकी fat loss की यात्रा में बाधक बन सकते है ।  

यह ऐसे fat loss myths है, जो आपको भ्रामक और गुमराह करते है और जिनके कारण आप निराश होकर अपनी फैट लॉस की जंग हार जाते है । अगर आप भी इन fat loss myths पर आसानी से विश्वास कर लेते है, तो ये आप की राह में बाधा बनकर आपको एक सुदृढ़ और स्वस्थ शरीर पाने से रोक सकते हैं ।

Fat loss myths no. 1 – आपके जेनेटिक्स 🧬 के कारण आप फैट लॉस नहीं कर पाते | 

fat loss and genetics meme

वैसे तो बहुत से शोध दर्शाते है कि आपके जेनेटिक्स (genetics) आपके मोटापे का कारण हो सकते है । लेकिन दुसरी ओर वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि मोटापे वाले जींस (genes) में परिवर्तन होना बहुत ही दुर्लभ है । जिससे ये माना जा सकता है कि जेनेटिक्स हमारे मोटापे का प्रत्यक्ष कारण (direct cause) नहीं हो सकता ।

हमारे शरीर में FTO नामक एक fat gene पाया जाता है, जिसमें परिवर्तन के कारण हमारे मोटापे के अवसर 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ जाते है । इसके अलावा भी मानव शरीर में कुछ अन्य प्रकार के fat genes मौजूद होते है , जो कुछ लोगों में प्राकृतिक रुप से ज्यादा फैट जमा होने का कारण बनते है ।

तो क्या इसका अर्थ ये है कि जन्म से ही इन लोगों के भाग्य में मोटापे से ग्रसित होना लिखा है ? 

इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिये हमें यह समझना होगा कि मोटापा (obesity) एक ऐसी जटिल समस्या है और जिसके जेनेटिक्स के अलावा भी अन्य कारण हो सकते है ।

Genetic characteristics के अलावा शारिरीक, सामाजिक और मानसिक वातावरण भी कुछ ऐसे कारक है, जिनके कारण मोटापे की समस्या हो सकती है ।

पिछ्ले कुछ दशकों में लोगों में मोटापे की समस्या बहुत तेज़ी से बढ़ी है और इसका कारण हमारे genes में अचानक से परिवर्तन को मानना उचित नही होगा । क्योंकि अगर देखा जाए तो इन्हीं दशकों के दौरान ज्यादा कैलोरी वाले संसाधित खाद्य पदार्थों की मात्रा बढ़ी है और टेक्नोलॉजी के बढ़ने के साथ ही शारीरिक गतिविधियाँ भी कम हुई है ।

इन fast foods का चलन, गलत खान पान की आदतों और आरामदायक लाइफस्टाइल ने हमारे चारों ओर एक ऐसा वातावरण बना दिया है, जिससे हम नहीं चाहते हुए भी मोटापे का शिकार हो जाते है ।

इसलिए यह कहना सही होगा कि मोटापा बढ़ने में हमारी आज की जीवनशैली का ज्यादा कसूर है, ना कि हमारे जेनेटिक्स का । 

“जहां एक ओर जेनेटिक्स सत्य है तो दूसरी ओर हमारी जीवनशैली सत्यानाश ।”

हमारे लिये जेनेटिक्स को बदलना संभव नहीं है, परंतु हमारी जीवनशैली को बदला जा सकता है । लेकिन फिर भी सच तो यही है कि हम सारा आरोप उन चीज़ों पर लगा देते है, जिन्हे बदलना हमारे हाथ मे नही है । बजाय इसके हमें उन चीजों पर मेहनत करनी चाहिये जो हमारे हाथ में है ।

जेनेटिक्स उनका काम करते रहेंगे, लेकिन हमारा जीवन कैसा होगा ? यह बहुत हद तक हमारे निर्णयों पर ही निर्भर है ।

Fat loss myths no. 2 – मोटे लोगों का मेटाबॉलिज्म पतले लोंगो से धीमा होता है ।

अक्सर कई मोटे लोगों द्वारा यह कहा जाता है कि वे लोग इसलिए भी फैट लॉस नहीं कर पा रहे क्योंकि उनका मेटाबॉलिज्म (metabolism) या चयापचय पतले लोगों से धीमा है । 

लेकिन क्या सच में ऐसा होता है? 

जवाब है नही । 

या यूँ कहे कि इसका उल्टा होता है ।

कैसे ? 

इसके लिये सबसे पहले हमें बेसल मेटाबॉलिज्म (basal metabolism) और रेस्टिंग मेटाबोलिक रेट (resting metabolic rate) को समझना पड़ेगा ।

हमारे शरीर में पाये जाने वाली सारी कोशिकाओं को कार्य करने और जीवित रहने के लिये जितनी calories की जरूरत होती, उसे शरीर का basal metabolism कहते है । जबकि आरामावस्था में शरीर में पाए जाने वाले आवश्यक ऊतकों (tissues) और अंगों (organs) को चलाने और भोजन के पाचन के लिये जितनी भी एनर्जी या calories की जरूरत पड़ती है, उसे resting metabolic rate कहा जाता है ।

ये resting metabolic rate हमारे शरीर के कुल वजन (complete weight) और मांसपेशियों के वजन (absolute lean mass) से dierctly जुड़ा होता है । जिसके कारण ज्यादा वजन वाले लोग calories भी ज्यादा consume करते है ।

इसके अलावा किसी भी छोटे शरीर को चलाने के लिये जितनी ऊर्जा खर्च होती है, उससे ज्यादा ऊर्जा बड़े शरीर को चलाने के लिये खर्च होती है । इसलिए कहा जा सकता है कि दुबले लोगों की तुलना में मोटे लोग ज्यादा कैलोरी consume करते है ।

जब हम वजन कम करते है, तो हमारे शरीर के कुल वजन के अनुपात में हमारी calories की जरूरत भी कम होती जाती है । मान लिजिये की किसी व्यक्ति का वजन पहले 100 किग्रा था, उसने 10 किग्रा वजन कम किया और उसका वजन 90 किग्रा बचा । जब पहले उसके 100 किग्रा के शरीर को चलाने के लिए 3000 calories की जरूरत पड़ती थी तो 90 किग्रा वाले शरीर को 2700 calories की ही जरूरत पड़ेगी ।

fat loss myths no. 3 – केवल फैट लॉस कर लेने से स्वास्थ्य अच्छा होगा ।

यह बात सच है कि मोटापा बहुत सी बीमारियों को जन्म देता है । इन बीमारियों में टाइप 2 डायबीटीस, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, स्ट्रोक्स, कुछ प्रकार के कैंसर, किडनी और लिवर वगैरह की बीमारियां शामिल है । 

लेकिन देखा जाए तो कई लोग ज्यादा बॉडी फैट होने के बाद भी स्वस्थ रहते हैं, जबकि कुछ लोग ऊपर से पतले और फिट दिखने के बावजूद भी अंदर से अस्वस्थ होते है । एक इन्सान के लिये ऊपर से फिट दिखना और अंदर से स्वस्थ होना दोनों जरुरी है ।

हम लोग जो भी खाना चुनते है, हमें पता होना चाहिये कि उस खाने में कितनी calories है और कितने ज्यादा पोषक तत्व । हमें किसी भी food को उसकी कैलोरी की मात्रा (calorie density) और पोषकता की मात्रा (nutrient density)  के आधार पर ही चुनना चाहिये ।

यदि आप किसी भी प्रकार का ज्यादा शुगर, मैदा या कोई भी अनहेल्दी या जंक फूड खाते है और उसे आप कम मात्रा में (calorie deficit में) खाते है तो आप फैट लॉस तो कर लेंगे, लेकिन आप अंदर से स्वस्थ नही रहेंगे । 

इसके विपरित यदि आप हरी सब्जियां, फल, अनाज या किसी भी प्रकार के अच्छे quality वाले हेल्दी food sources खाते है और उन्हे ज्यादा मात्रा में (calorie surplus में) खाते है तो उनसे आप स्वस्थ तो हो सकते है, लेकिन इनसे आपको वजन कम या फैट लॉस करने में कोई सहायता नहीं मिलेगी ।

आपका वजन कम होगा या नही यह उस खाने में calorie की मात्रा पर निर्भर करता है । जबकि आप स्वस्थ रहेंगे या नहीं यह उस खाने की calorie की गुणवत्ता मतलब उसके अंदर के पोषक तत्वों की मात्रा पर निर्भर करता है । स्वस्थ रहने और फिट दिखने के लिये कैलोरी की क्वांटिटी और क्वालिटी में सही बैलेंस होना जरुरी है ।

Fat loss myths no. 4 – फैट लॉस करने के लिए कैलोरी गिनना जरूरी नहीं ।

जो भी व्यक्ति वजन कम करना चाहता है, उसे हमेशा यही सलाह दी जाती है कि eat less and move more, मतलब कि कम से कम खाओ और ज्यादा से ज्यादा काम करो ।

लेकिन क्या कभी आपने इसके पीछे के वैज्ञानिक कारण को जानने की कोशिश की है ?

यदि आमतौर पर देखा जाए तो किसी व्यक्ति का वजन कम होगा या ज्यादा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस व्यक्ति के द्वारा कितनी कैलोरीज़ खाई गई है और कितनी कैलोरीज़ खर्च या बर्न की गई है ।

Science में, यदि ली गई calorie और खर्च की गई calorie दोनों बराबर होती है, तो इसे एनर्जी बैलेंस कहते हैं । हमारा वजन और बॉडी फैट इसी एनर्जी बैलेंस पर निर्भर करता है ।

अगर हमें फैट लॉस करना है तो हमें नेगेटिव एनर्जी बैलेंस बनाना होगा, मतलब कम calories लेना और ज्यादा calories खर्च करना । इसके विपरित अगर हमें वजन बढ़ाना है तो एनर्जी बैलेंस को पॉजिटिव रखना पड़ेगा, मतलब कम कैलोरीज़ खर्च करना और ज्यादा कैलोरीज़ लेना ।

यह एक वैज्ञानिक तथ्य है, जोकि थ्योरी और प्रेक्टिस दोनों में काम करता है । इस तथ्य की पुष्टि हर न्यूट्रीशनल और एक्सरसाइज विज्ञान की किताबों एवं साइंटिफिक रिसर्च पेपर्स में कई बार की गई है ।

आज भी ऐसे कई लोग है जो वैज्ञानिक सबूतों के बाद भी इस तथ्य को मानने से साफ़ इंकार कर देते है । लेकिन वे लोग ये नहीं जानते की जितनी भी प्रकार की डाइट्स मार्केट मे उप्लब्ध है उन सब का एक ही उद्देश्य होता है, कि कैसे कम से कम calories ली जाये यानी calorie deficit ।

वैसे तो हर एक calorie को गिनना कठिन काम है और रोजमर्रा की जिंदगी में आम इन्सान के लिये तो असम्भव है । लेकिन ऐसा जरुरी नहीं है कि फैट लॉस के लिये हमें एक-एक calorie को गिनना होगा । बल्कि इसका मोटे तौर पर अंदाज़ा लगाया जाता है ।

लेकिन जब आप एनर्जी बैलेंस को अच्छी तरह से समझ जाते हैं और यह जान जाते है कि इसे रोजमर्रा की जिंदगी में कैसे उपयोग में लाना है । तो आप आसानी से फैट लॉस कर सकते है ।

 या तो आप ज्यादा एक्सरसाइज और ऐक्टिविटी करके इस calories या एनर्जी के खर्च को बढ़ा सकते है, या फिर खाने की मात्रा को कम करके इसे घटा सकते हैं ।

Fat loss myths no. 5 – कार्बोहाइड्रेट खाने से मोटापा या फैट बढ़ता है ।

काफ़ी समय से carbohydrates को कई फिटनेस एक्सपर्ट्स, किताबों और वेबसाइट्स द्वारा मोटापे का सबसे बड़ा कारण माना जाता रहा है । इसलिए इनके द्वारा मोटापे से बचने या फैट लॉस करने के लिये low carb diet अपनाने की राय दी जाती है । 

इन low carb डाइट्स को कई वैज्ञानिक अध्ययनों और इसे follow करने वाले लोगों द्वारा भी फैट लॉस के लिये काफ़ी असरदार माना गया है ।

तो क्या यह सच है कि कार्बोहाइड्रेट ही मोटापे की असली जड़ है ? 

और यदि नहीं तो फिर कम कार्बोहाइड्रेट वाली डाइट्स इतनी असरदार क्यो होती है ?

सच तो ये है कि low carb diets भी एक तरह से low calorie diets ही है । low carb diets अपने आप ही calories को कम कर देती है । और जैसा कि मेरे द्वारा ऊपर बताया गया है कि जब भी कोई व्यक्ति कम कैलोरीज़ खाता है, तो उसका वजन या फैट अपने आप ही काम होने लगता है । 

अगर आप आपकी diet में से carbs को हटाते है, तो आपके पास खाने के लिये ज्यादा choices नही बचती है और आप आसानी से ओवरईटिंग से बच जाते है ।

इसके अलावा मोटापा बढ़ाने वाले ज्यादातर मीठे और unhealthy junk foods में carbs बहुत अधिक मात्रा में होते है, और एक low carb diet को अपनाने से आप इनसे भी बच जाते है ।

एक बात यह भी है कि जब भी हम low carb diet लेते है, तो जिन फूड्स का हमें चुनाव करना पड़ता है, उनमें हाई प्रोटीन होता है और ज्यादा प्रोटीन को पचाने के लिए शरीर को ज्यादा एनर्जी खर्च करना पड़ती है, जिससे फैट लॉस करना आसान हो जाता है ।

Fat loss myths no. 6 – भोजन में पाये जाने वाले वसा से मोटापा या फैट बढ़ता है ।

कई लोग भोजन में फैट (dietary fat) को शामिल करने से डरते है । उन्हें लगता है कि जो फैट (dietary fat) हम खाते है, वही शरीर मे चर्बी (body fat) के रुप में जमा होता है ।

इस तथ्य पर आँख बंद करके इसलिए विश्वास कर लिया जाता है, क्योकिं यदि सरंचना के आधार पर देखा जाए तो dietary fat और बॉडी में जमा फैट दोनों एक जैसे होते है । 

इसके अलावा कई ऐसे वैज्ञानिक तथ्य भी है, जो दर्शाते है कि dietary fat का body fat बढ़ने के साथ सम्बन्ध है । यही सम्बन्ध हमें भ्रमित करता है और असलियत से हमें दूर करता है ।

इसका सही कारण तो यह है कि fat एक ऐसा macronutrient (मैक्रोन्यूट्रीएंट) है, जिसमे सबसे अधिक कैलोरी पायी जाती है । एक ग्राम फैट में 9 कैलोरीज होती है । जबकि अन्य दोनों macronutrient (प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट) में एक ग्राम मे 4 कैलोरीज पायी जाती है ।

तो यह आसानी से समझा जा सकता है कि dietary fat के द्वारा ज्यादा कैलोरीज़ शरीर में जाना मोटापा बढ़ने का प्रमुख कारण है ना कि फैट का डायरेक्टली शरीर में जमा हो जाना । 

यदि हम खाते समय इस बात से सजग है कि हमारी डाइट में फैट से मिलने वाली कैलोरीज हमारे लक्ष्य के अनुकूल है तो इससे डरने की कोई जरूरत नहीं । बल्कि इसके विपरित इसे संतुलित मात्रा में लिया जाए तो यह फैट लॉस में भी सहायता करती है ।

ऐसे fat loss myths से बचाव कैसे करें – 

चाहे कोई भी मिथ या भ्रांति हो, उससे बचाव का सर्वश्रेष्ठ तरीका यही है कि जो जानकारी हमें मिली है, उसका ध्यानपूर्वक और सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया जाए । 

फिटनेस और फैट लॉस भी एक ऐसा ही क्षेत्र है, जिसमें अगर हम बिना सोचे समझे किसी भी जानकारी पर भरोसा करते है, तो ये भी हमें कई मिथकों और भ्रांतियों मे उलझा सकता है ।

अगर हम हमारी शरीर की जरूरतों को समझते हुए, किसी भी जानकारी पर आँख बंद करके विश्वाश न करते हुए और खुले दिमाग से काम करते हुए किसी भी अच्छे diet या exercise plan को अपनाते है तो हमें अच्छे परिणाम मिलते है ।

उम्मीद करता हूँ कि आपको इस आर्टिकल से कुछ सहायता मिली हो । धन्यवाद ।

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