कभी न कभी शायद आपने भी किसी के मुँह से एक शब्द “god gifted” सुना होगा। किसी इंसान के लिये जब ये शब्द उपयोग में आता है, तो इसका मतलब उसे भगवान ने दूसरे लोगों के मुकाबले कुछ ज्यादा फायदा देकर भेजा है।
Bodybuilding में यह शब्द अच्छे genetics के रुप में उपयोग होता है। जो लोग प्राकृतिक रुप से “genetically gifted” नहीं होते, उन लोगों को gifted लोगों के मुकाबले कहीं अधिक मेहनत करनी पड़ती है और फिर भी कई बार ये उनके स्तर तक नहीं पहुंच पाते।
जब भी हम घर से बाहर निकलते हैं तो हमें कई प्रकार के शारीरिक आकार वाले लोग दिखाई देते हैं। कोई पतला, तो कोई मोटा और कोई फिट, तो कोई मसक्युलर।
कुछ लोग होते हैं जो दिन भर अनाप-शनाप fast food खाने के बाद भी मोटे नहीं होते और उनकी बॉडी muscular और ripped दिखती है। इसके अलावा कुछ लोग होते हैं जिन्हे कितना भी खिलाया जाए, उनका शरीर दुबला-पतला और कमजोर दिखाई देता है। और इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे होते है, जो खाने को देख भी ले तो उनका पेट निकल जाता है।
यह बात बिल्कुल सच है कि हमारा शरीर किसी diet और training पर किस तरह से प्रतिक्रिया देगा, यह काफ़ी हद तक हमारे genetics ही तय करते है।
लेकिन क्या genetics के आधार पर हमारे शरीर को कुछ body types या somatotypes में बाँटना उचित है?
फिटनेस की दुनिया में इसके कई विशेषज्ञों का मानना है कि हमें body types (या सोमेटोटाइप्स) की जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि इन्हीं सोमेटोटाइप्स के अनुसार diet और एक्सरसाइज/ट्रेनिंग करके इस genetic disadvantage को कम किया जा सकता है।
तो क्या सच में ये body types जिन्हें somatotypes भी कहा जाता है, bodybuilding में सफलता के लिये इतने जरुरी है या फिर लोगों को भ्रमित करने वाला एक सिद्धांत मात्र है?
यह जानने से पहले आइये जानते है, ये सोमेटोटाइप्स कौन सी बला है?
सोमेटोटाइप्स क्या है? What is Somatotypes in Hindi
Somatotype शब्द में somato का अर्थ होता है शरीर या बॉडी और type का अर्थ होता है, शायद टाइप :)। इसलिये इसे body type के वैज्ञानिक शब्द के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।
जैसा कि हम जानते है कि मानवीय शारीरिक संरचना कई प्रकार की होती है और इन्हीं शारीरिक गुणों के आधार पर इनका अध्ययन किया जाना चाहिए। इनको अध्ययन करने की जो सबसे प्रचलित विधि है, उसकी खोज डॉक्टर विलियम शेल्डन (Dr. William sheldon) ने 1940 में की थी।
डॉक्टर विलियम शेल्डन ने कई पुरुषों और महिलाओं के हजारों फोटोग्राफ्स लिये और इन फोटोग्राफ्स को 88 प्रकार की अलग अलग श्रेणियों में बाँटा, जिन्हें उन्होनें somatotypes (सोमेटोटाइप्स) नाम दिया।
इन सोमेटोटाइप्स को अधिक आसान बनाने के लिये उन्होनें 88 श्रेणियों का समूह बनाकर उनकी तीन बड़ी श्रेणियाँ बना दी। जो कि Mesomorph (मेसोमोर्फ) , Ectomorph (एक्टोमॉर्फ) और Endomorph (एंडोमॉर्फ) कहलायी।
अब आप सोच रहे होंगे, ये अजीब नाम आये कहाँ से?
जब भ्रूण का विकास होता है, तो इसकी तीन layers (परतें) होती है, जिन्हे germ layers (जनन स्तर) कहते है। इन तीनों के नाम endoderm (एण्डोडर्म), mesoderm (मेसोडर्म) और ectoderm (एक्टोडर्म) है, जिनके ऊपर sheldon ने सोमेटोटाइप्स के नाम रखे।
इन तीनों जर्म लेयर्स से पुरा मानव शरीर बना होता है। एण्डोडर्म से पाचन तंत्र बना। मेसोडर्म से मांसपेशियां, हृदय और रक्त वाहिकाये बनी। एक्टोडर्म से त्वचा और तंत्रिका तंत्र बना।
तो आइये जानते है कि मेसोमोर्फ, एक्टोमॉर्फ और एंडोमॉर्फ की क्या विशेषताएँ हैं।
Ectomorph (एक्टोमोर्फ)
Ectomorphic somatotype वाले लोग प्राकृतिक रूप से दुबले पतले होते है। देखने पर इनका शरीर, हाथ पैर और मांसपेशियां भी लम्बी और दुबली दिखाई देती है। यह वो लोग होते हैं, जो आसानी से न तो muscle gain कर पाते है और ना ही fat (चर्बी), इसलिए ये हमेशा दुबले पतले ही दिखाई देते है।
माना जाता है कि इनका मेटाबोलिज़्म बहुत तेज़ होता है और ये ज्यादा Carbohydrates वाली diet को आसानी से पचा लेते है।
एक्टोमोर्फ की मुख्य विशेषताएं
दुबले पतले (Thin)
छोटा हड्डियों का ढांचा (small bone structure)
लम्बी और पतली मांसपेशियां (stringy muscles)
कन्धों की चौड़ाई कम होना (small shoulder width)
सपाट सीना (flat chest)
वजन आसानी से न बढ़ना (weight gain difficulty)
चयापचय का तेज़ होना (fast metabolism)
ज्यादा सक्रिय (hyperactive)
Endomorph (इंडोमॉर्फ)
Endomorphic somatotype वाले लोग प्राकृतिक रुप से मोटे और चौड़े दिखाई देते है। इनकी शारिरीक सरंचना इस प्रकार होती है कि इनकी कमर चौड़ी और हड्डियों का ढांचा बड़ा दिखाई देता है। इनका मेटाबोलिज़्म धीमा होता है और यह Carbohydrates को आसानी से पचा नहीं पाते।
यह लोग आसानी से muscles तो gain कर लेते है, लेकिन इनका fat भी बहुत तेज़ी से बढ़ता है। जिससे ये muscular होने के बाद भी मोटे और undefined दिखाई देते है।
इंडोमॉर्फ की मुख्य विशेषताएं
गोलाकार शरीर (soft and round body)
छोटे हाथ पैर (short and stocky limbs)
बड़ा हड्डियों का ढांचा (big-boned)
धीमा चयापचय (slow metabolism
चर्बी आसानी से न घटना (fat loss difficulty)
माँसपेशियों के ऊपर अधिक चर्बी (lack of muscle definition)
ज्यादा भूख लगना (large appetite)
इन दोनों के बाद आता है ऐसा body type जो हर कोई चाहता है-
Mesomorph (मेज़ोमोर्फ)
Mesomorphic somatotype वाले लोग प्राकृतिक रूप से मस्क्युलर होते है जिससे इनकी मांसपेशियां आसानी से दिखाई देती है।
इस body type वाले लोगों की सभी उंगलियाँ घी मे होती है। क्योंकि ये लोग माँसपेशियों को आसानी से बढ़ा लेते है और इनमें चर्बी कम करते समय माँसपेशियों का क्षय (muscle loss) कम होता है।
मेज़ोमोर्फ की मुख्य विशेषताएं
फिट और ताकतवर शरीर (athletic body)
वजन को आसानी से घटा-बढ़ा सकते हैं (gain and maintain weight easily)
दिखने वाली माँसपेशियाँ (defined muscle)
कन्धों की चौड़ाई कूल्हों से ज्यादा होना (Shoulders wider than hips)
ताकतवर होते हैं (gains strength easily)
संतुलित चयापचय (normal fast metabolism)
सही शारिरीक सरंचना (ideal posture)
तो क्या Endomorph और Ectomorph, bodybuilding नहीं कर सकते?
तो क्या आप Ectomorph है तो आप हमेशा दुबले पतले ही रहेंगे, कभी तगड़े और muscular नहीं हो सकते?
या फिर ज्यादा Endomorph है तो हमेशा मोटे और बेडौल ही दिखेंगे, कभी lean और muscular नही होंगे?
अब अगर आप ये जानकर निराश हो गये कि आपका body type भी Ectomorph या Endomorph है। तो आपको निराश होने की जरूरत नही है क्योंकि हम आगे इस पोस्ट में somatotypes के myth का पर्दाफाश करने वाले है।
आज भी कई ऐसे लोग है जो सोमेटोटाइप्स के इस सिद्धांत पर विश्वास करते हैं, कि जितना अच्छा आपका body type होगा, उतनी ही सफलता आपको बॉडीबिल्डिंग में मिलेगी।
लेकिन क्या ऐसा है ?
सोमाटोटाइप सिस्टम की कमियाँ
१. यह एक मनोवैज्ञानिक खोज थी, ना कि शारीरिक।
आज भी सोमेटोटाइप्स के नाम पर अलग अलग diets और training बेची जा रही है, लेकिन जब sheldon ने इसकी खोज की थी तो इसका diet और training से कोई लेना देना नहीं था। जबकि sheldon का इरादा तो हर बॉडी टाइप को इन्सान के व्यक्तित्व, स्वभाव और बुद्धिमत्ता से जोड़ना था।
वैसे तो इस सिद्धांत को मनोवैज्ञानिक समुदाय ने बड़े पैमाने पर नकार दिया था क्योंकि सिर्फ शारीरक बनावट या बॉडी कम्पोजिशन के आधार पर किसी इन्सान के व्यक्तित्व, स्वभाव या बुद्धिमत्ता का पता नहीं लगाया जा सकता। इसके अलावा फिटनेस समुदाय के कई लोगों ने भी इसे पूरी तरह से नकली या छद्म विज्ञान (pseudoscience) ही माना।
इसी तरह वर्तमान बॉडी कम्पोजिशन के द्वारा यह भी नहीं कहा जा सकता कि किसी व्यक्ति का जन्म जिन्दगीभर सिर्फ मोटा, मस्कुलर या दुबला रहने के लिये हुआ है।
Sheldon का यह मानना था कि हमारे बॉडी टाइप या सोमेटोटाइप के आधार पर ही हमारी शारीरिक और मानसिक विशेषताएँ निर्धारित होती है। इसके विपरीत सच तो यह है कि हमारी शारीरिक और मानसिक विशेषताओं के कारण हमारे वर्तमान सोमेटोटाइप का निर्धारण होता है।
२. जेनेटिक्स और बॉडी टाइप को समझना इतना आसान नहीं है।
सोमेटोटाइप मॉडल की दुसरी समस्या यह है कि इसमें बॉडी टाइप्स को बहुत ही ज्यादा सरल तरीके से समझाया गया है, लेकिन सच तो यह है कि बॉडी टाइप्स को सिर्फ तीन श्रेणियों में बाँटना बुद्धिमानी नहीं होगी। क्योंकि इस दुनिया मे लगभग 7.7 अरब लोग रहते हैं और हर किसी का बॉडी टाइप थोड़ा बहुत अलग होता है।
देखा जाये तो बहुत कम लोग ही होते है, जो पूरी तरह से किसी एक सोमेटोटाइप में फिट बैठते है। sheldon के द्वारा हर एक सोमेटोटाइप में बहुत सी विशेषताएँ बताई गई है और इन विशेषताओं के आधार पर किसी भी व्यक्ति के शुद्ध रुप से मेसोमोर्फ, एक्टोमॉर्फ या एंडोमॉर्फ होने की संभावना बहुत कम होती है । हर व्यक्ति इन तीनों का कॉम्बिनेशन हो सकता है ।
Sheldon को इसे समझाने के लिये स्वयं एक पैमाना (scale) बनाना पड़ा था। जिससे कौन से व्यक्ति में कौन से सोमेटोटाइप की अधिकता ज्यादा है, यह पता लगाया जा सके। इस स्केल को उन्होनें 1 से 7 तक की वेल्यू दी।
उदाहरण के लिये अगर कोई व्यक्ति पूरी तरह मेसोमोर्फ होता है, तो उसे 171 का स्कोर दिया और इसी प्रकार पूर्ण एक्टोमॉर्फ 117 और पूर्ण एंडोमॉर्फ 711 होगा। इसी तरह किसी सामान्य शारीरिक बनावट वाले व्यक्ति का स्कोर 444 हो सकता है।
इसके अलावा सभी इंसानों के एक दुसरे से अलग होने में genetics का बहुत बड़ा हाथ होता है। हमारी बहुत सी शारीरिक विशेषताएँ DNA पर निर्भर होती है। कुछ विशेषताएं हमारे माता पिता और पूर्वजों से विरासत में मिली है।
हमारी मांसपेशियों को बनाने वाले muscle fibers का अनुपात और हमारे अंगों की लम्बाई (limb length), हड्डियों से मांसपेशी का जुड़ाव (muscle insertion) जैसी खास विशेषताओं से हमारे बॉडी टाइप का निर्धारण होता है, ना की सोमेटोटाइप के सिद्धांत से।
३. बॉडी टाइप को बदला जा सकता है।
इस सिद्धांत की सबसे बड़ी समस्या यही है कि इसने मानसिक रुप से कई लोगों को अपनी कैद में जकड़ रखा है।
आज भी ऐसे कई लोग है जो मानते है कि वो कभी ज्यादा muscles नहीं बना सकते, क्योंकि वो ectomorph है या वो कभी फैट लॉस नहीं कर सकते, क्योंकि वो endomorph है । जो कि सच नहीं, सिर्फ बहाने है ।
सोमेटोटाइप या बॉडी टाइप का उपयोग सिर्फ हमारी वर्तमान शारीरिक बनावट को देखने के लिये किया जाना चाहिए।
हमारा बॉडी टाइप यह दर्शाता है कि वर्तमान में हमारी जीवन शैली कैसी है, हम कितनी कसरत कर रहे हैं और कैसी डाइट ले रहे है । इसके अलावा ये चीज़े हमारे आसपास के वातावरण और genetics पर भी निर्भर करती है ।
मान लीजिये कि कोई व्यक्ति है जो पूरी तरह से फिट है, कोई बीमारी से ग्रसित नहीं है, बिल्कुल संतुलित और हेल्दी डाइट लेता है और नियमित रूप से लगातार बेहतरीन ट्रेनिंग लेता है। तो उसका बॉडी टाइप मस्कुलर और ripped दिखाई देगा, बिल्कुल mesomorph की तरह।
इसके विपरीत अगर कोई दूसरा व्यक्ति जो दिन भर कोई शारीरिक मेहनत का काम नहीं करता, बैठा रहता है और ज्यादा कैलोरी वाला जंक फूड खाता है। तो वह endomorph की तरह मोटा, राउंड और सॉफ्ट दिखाई देगा।
हमारा बॉडी टाइप कैसा भी हो उसे रोजमर्रा की गतिविधियों, जीवनशैली और खाने-पीने की आदतों में सुधार करके बदला जा सकता है।
यहाँ हम उदाहरण के तौर पर हमारे फ़ेवरेट बॉयकॉट बॉलीवुड स्टार आमिर खान को ले सकते है। उनकी 2008 में आयी फिल्म गजनी के दौरान उन्होंने एक transformational वीडियो जारी किया था, जिसमें वे शुरुआत में ectomorph दिखाई देते हैं और transformation के बाद mesomorph।
इसी प्रकार उनकी 2016 में आयी दंगल फिल्म के लिये भी उन्होनें एक transformational वीडियो जारी किया था, जिसमें जब उन्होनें वजन बढ़ाया था तो वो endomorph दिख रहे थे और जब फैट लॉस किया तो mesomorph बन गये।
जब हमने somatotype सिस्टम की कमियों को समझ लिया है, तो आइये जानते है कि somatotype के आधार पर ली जाने वाली ट्रेनिंग और डाइट क्या है? और क्या हमें उनके लेना चाहिये?
सोमेटोटाइप के अनुसार ट्रेनिंग
अगर आप इंटरनेट पर जाकर आप “body type training” सर्च करते हो, तो आपको तमाम ऐसे articles और videos मिल जायेंगे, जिनमें बताया गया है कि तीनों बॉडी टाइप वाले लोगों की अलग अलग ट्रेनिंग कैसी होनी चाहिये।
अगर देखा जाए तो इनमें लिखी कई बातों का कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है। इनमें दिए गये बहुत से सुझाव सिर्फ “bro science” पर आधारित है।
जैसे इनके द्वारा endomorphs को सलाह दी जाती है, कि उनका exercise के दौरान उनकी repetition 15 से ज्यादा हो चाहिये। इसी प्रकार ectomorphs को कम repetition 5-10 के बीच और mesomorphs को 8-12 के बीच मध्यम repetition लेना चाहिये।
इसके अलावा endomorphs को sets के बीच में 30-60 सेकंड्स का आराम, mesomorphs को 45-90 सेकंड्स और ectomorphs को 2-3 मिनट या ज्यादा का rest लेना चाहिये।
कई जगह ectomorphs को हफ्ते में सिर्फ 3 दिन workout करने की और endomorphs को 6-7 दिन की सलाह दी जाती है।
ऊपर लिखी बातें इसलिए भी खोखली दिखाई पढ़ती है, क्योंकि कोई भी ट्रेनिंग somatotype से ज्यादा हमारे genotype पर निर्भर करती है।
जब भी बॉडी बिल्डिंग में जेनेटिक्स की बात की जाती है, तो जेनेटिक्स ही है जो निर्धारित करते है कि हमारी बॉडी किसी ट्रेनिंग प्रोग्राम पर किस तरह respond करेगी।
अगर हम किसी ऐसे किसी दुबले पतले व्यक्ति का उदाहरण ले जिसने कभी बॉडी बिल्डिंग ट्रेनिंग नहीं की, तो बिना उसे ट्रेनिंग कराये हम कभी पता नहीं लगा सकते है कि वो high responder है या low responder।
हो सकता है कि ट्रेनिंग के बाद उसकी muscle growth बहुत ज्यादा तेज़ी से बढे, जैसा कि इस अध्ययन में साबित हुआ।
अगर हम पहले ही उस व्यक्ति का दुबला पतला शरीर देखकर उसके ऊपर ectomorph का टैग चिपका दे, तो वो कभी भी उसका जेनेटिक सामर्थ्य (genetic potential) नहीं जान पाएगा।
इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी होते है, जिनके बिना ट्रेनिंग के ही थोड़े बहुत muscles बन जाते है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि वो लोग ट्रेनिंग के बाद भी वैसे ही muscle gain करें, जैसा कि किसी mesomorph बॉडी टाइप वाले की विशेषता में बताया गया है।
सोमेटोटाइप के अनुसार डाइट
जब भी बॉडी बिल्डिंग में डाइट की बात आती है तो इसका सीधा मतलब ऐसे खाने से है, जो आपकी body composition को बदलने में (मतलब muscle building और फैट लॉस) में मदद करें ।
अब फिटनेस इंडस्ट्री में आज भी कई विशेषज्ञों का मानना है कि आपका बॉडी टाइप ही आपको ये बताएगा कि आपका शरीर किस प्रकार के खाने पर अच्छी तरह से respond करेगा।
ज्यादातर diets जो सोमेटोटाइप के अनुसार बनी है, उनमें ectomorphs को सलाह दी जाती हैं कि उनके खाने में कार्बोहाइड्रेट (carbs) की मात्रा ज्यादा होनी चाहिये और इसके विपरीत अगर कोई Endomorph है तो उसे कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बहुत कम रखनी चाहिये।
अब अगर हम ectomorphs की बात करें तो उनकी प्रमुख जरूरत हमेशा muscle growth होती है और बॉडी टाइप डायटिंग में कहा जाता है कि उनको muscle growth के लिये ज्यादा carbs जरूरी है ।
लेकिन 25 लोगों पर किये गये इस अध्ययन से यह साबित हुआ कि कम carbs (keto diet) पर भी muscle growth की जा सकती है।
इसके अलावा 16 हफ्तों तक किये गये इस अध्ययन में यह बताया गया कि ज्यादा carbs वाली डाइट पर भी फैट लॉस किया जा सकता है। जबकि Endomorphs को फैट लॉस के लिये कम carbs वाली डाइट का सुझाव दिया जाता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
Body types की आधारभूत जानकारी होने में कोई बुराई नहीं है, बल्कि इसे पत्थर की लकीर मान लेने में है। हमें यह बात समझना चाहिये कि जैसे जैसे हम diet और ट्रेनिंग में उन्नति करते जायेंगे, हमारा body type बदल सकता है।
शारिरीक रुप से जैसा हम आज दिखते है और जो चीज हमारे शरीर को बनाती है; वह पूरे जीवनकाल में हमारे ऊपर पड़ने वाले पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों, विभिन्न प्रकार की अनुवांशिक (genetic) विविधताओं, भौगोलिक स्थानों और व्यक्तिगत निर्णयों आदि से मिलकर बनी एक विशाल श्रृंखला है।
आपकी बॉडी बिल्डिंग की यात्रा में कई बार ऐसा समय आयेगा जब आप आपके body type को अलग-अलग रुप में देखोगे।
यह बात सही है कि हर इन्सान का शरीर अलग-अलग होता है। हर किसी को एक जैसी diet और training पर अलग-अलग तरीके से परिणाम मिलते है और इसी कारण हर किसी की निजी जरूरत के अनुसार ही diet और ट्रेनिंग का संयोजन होना चाहिये।
यह सब हमें अपने अनुभव से पता चलेगा न कि body types की जानकारी होने से। सिर्फ इन तीन somatotypes से शरीर की असली क्षमता को नहीं जाना जा सकता है। ना ही body type की मदद से muscle fibers को जाना जा सकता है और ना ही इन फ़ायबर्स से बनी माँसपेशियों की सरंचना (muscle attachment) आदि को।
आपके जेनेटिक्स को आप तब तक नही जान पाओगे, जब तक आप आपकी जेनेटिक सीमा (genetic limit) तक नहीं पहुंच जाते। जहाँ तक पहुंचने के लिये आपको मेहनत और धैर्य की आवश्यकता है। ना कि खुद को किसी body type की श्रेणी में रखने की।