“How to get big legs fast” जैसे ही आपने ये वीडियो youtube पर देखा। आपने सोचा मुझे भी एक जोड़ी बड़े और मस्क्युलर लेग्स चाहिये।
अगले ही दिन आपने उस वीडियो में बताया गया workout ज्यों का त्यों कर लिया। Squats से शुरु किया और calf raise पर खत्म किया।
ऐसा बेहतरीन leg workout आपने आज तक नहीं किया था। ऐसे workout के बाद तो अब दुबले पतले पैरों का तो सवाल ही नही उठता।
अगले दिन जैसे ही आप बिस्तर से उठकर दुनिया से भिड़ने को तैयार थे, तो ये क्या आप तो ठीक से चल भी नही पा रहे। बाथरुम तक जाना भी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के समान दूभर दिखाई दे रहा था।
कमर के नीचे का पुरा हिस्सा दर्द कर रहा था। कुल्हे, जाँघे, पिंडलिया सब दर्द के मारे चीख रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने लठ पर तेल पिलाकार टांगो पर लठ ही लठ मारे हो। कम से कम ऐसा तो महसूस होता ही है।
बधाई हो, Delayed onset muscle soreness जो की DOMS के नाम से भी कुख्यात है, की दुनिया में आपका स्वागत है।
वैसे तो delayed onset muscle soreness बड़ी आम सी घटना है। यह हर कोई व्यक्ति अनुभव करता है जो पहली बार एक्सरसाइज कर रहा हो, या कुछ दिनो के अंतराल के बाद कर रहा हो या फिर कोई एडवांस एथलीट जिसने पहले से ज्यादा भारी तनाव (mechanical stress) से अंजान बेखबर मासूम मांसपेशियों को अचानक उस तनाव को महसूस कराया हो।
खुशखबरी तो यह है कि जैसे-जैसे आप एक्सरसाइज में अनुभवी होते जाते हो, वैसे वैसे आपकी मांसपेशियां उस एक्सरसाइज की तीव्रता और कार्यभार को झेलने में सक्षम होती चली जाती है और आपको कम muscle soreness का कम अनुभव करना पड़ता है।
इसके अलावा यह आपके लिये असहज या असुविधाजनक हो सकते है, लेकिन इनका स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता।
कई लोग इसे गर्व की दृष्टि से देखते है, उनका मानना है कि delayed onset muscle soreness एक प्रभावी वर्काउट का सूचक है। लेकिन क्या सच में यह “no pain no gain” वाला सिध्दांत काम करता है? यह हम इसी post मे पता लगायेंगे।
इसके अलावा हम delayed onset muscle soreness के विज्ञान (यह क्यो होता है, इसके फायदे-नुक्सान और इसे कम कैसे करें?) के बारे में बात करेंगे ताकि आपको पता चल सके कि इसकी जानकारी आपके शरीर और ट्रेनिंग के लिये कितनी महत्वपूर्ण है।
Delayed onset muscle soreness क्या है ?
Delayed onset muscle soreness को शॉर्ट में DOMS भी कहा जाता है । यह एक ऐसी शारीरिक स्थिति है जिसमें कसरत के 24 से 48 घण्टों के बाद मांसपेशियों में दर्द या soreness महसूस होती है। अगर वही कसरत आप कुछ दिनो बाद अगली बार दोहराते है, तो muscle soreness पहले जितनी ज्यादा नही होगी।
कई लोगों में muscle soreness सोकर उठने के बाद महसूस होती है और 24 घण्टों में तीव्र हो जाती है और 72 घण्टों तक बनी रहती है। इसके अलावा कई लोग इसे 48 घण्टों के बाद महसूस करते है और 72 घण्टों के बाद soreness अपनी ऊंचाई पर होती है।
इसे मांसपेशियों के बुखार (muscle fever) के नाम से भी जाना जाता है । सरकारी कामों की तरह delayed (देरी से) होने के कारण ही इसे delayed onset muscle soreness कहा गया है। इसे PEMS (post exercise muscle soreness) भी कहा जाता है लेकिन DOMS थोड़ा भारी शब्द है इसलिये हेल्थ और फिटनेस में DOMS का इस्तेमाल होता है।
DOMS कौन अनुभव कर सकता है ?
ऐसे ऐडवांस एथलीट या एक्सपीरियंस्ड लिफ्टर जिन्होनें जीवन का काफ़ी लम्बा समय ट्रेनिंग करते हुए निकाल दिया है, DOMS का हर एक स्तर (हल्के दर्द से लेकर भारी तक) अनुभव किया होगा।
भले ही आप का ट्रेनिंग अनुभव कितने भी ऊँचे स्तर का हो, अगर ट्रेनिंग के दौरान आप पहले से ज्यादा अडैप्टिव रिस्पांस या मेकेनीकल टेंशन का निर्माण करते हो तो आपको DOMS का अनुभव होगा। इसके अलावा अगर आप ट्रेनिंग में बिल्कुल नये है, तो कुछ महीनों तक आपको ट्रेनिंग के हर सत्र के बाद DOMS का अनुभव होगा।
इसके अलावा DOMS का दर्द कितना तीव्र होगा और कितने समय तक रहेगा, यह बात हर किसी व्यक्ति पर अलग अलग निर्भर करती है। कुछ लोगों में तो हल्की एक्सरसाइज से भी इतनी soreness आ जाती है कि कई दिनो तक नही जाती और कई लोगों को तो जिम में जी तोड़ मेहनत करने के बाद भी बहुत कम soreness का अनुभव होता है।
Delayed onset muscle soreness का कारण क्या है ?
देखा जाये तो इसका सटीक कारण तो अभी तक अस्पष्ट है क्योंकि मैडिकल विज्ञान ने अन्य प्रकार के छोटे-बड़े दर्दों पर जितनी रिसर्च की है, उसके मुकाबले delayed onset muscle soreness के साथ सौतेला व्यवहार किया गया, मतलब इस पर ज्यादा रिसर्च नहीं की गई।
वैसे तो muscle soreness किसी भी एक्सरसाइज से हो सकती है लेकिन यह उन एक्सरसाइज से ज्यादा होती है जिनका भार सहन करने के लिये हमारी मांसपेशियां तैयार नहीं थी। अगर हम पिछ्ली बार के वर्काउट से ज्यादा वजन उठायेंगे या ज्यादा लम्बे समय तक कोई कार्डियो एक्सरसाइज करेंगे तो अगले दिन मांसपेशियों को sore पायेंगे।
Delayed onset muscle soreness के बारे में एक आम गलत धारणा यह है कि यह लैक्टिक एसिड (lactic acid) के निर्माण के कारण होता है, जो हमारे शरीर द्वारा ऑक्सीजन भंडार समाप्त होने पर उप-उत्पाद (by-product) के रूप में उत्पन्न होता है।
ऐसा इसलिये माना जाता है क्योंकि जब हमारी muscles sore होती है तो उस समय लैक्टिक एसिड अक्सर हमारे खून में पाया जाता है । लेकिन कई रिसर्चेस के बाद अब हमे पता है कि लैक्टिक एसिड delayed onset muscle soreness का प्रमुख कारण नहीं है ।
एक तर्क यह भी दिया जाता है की muscle soreness मांसपेशियों में बहुत छोटे-छोटे घावों (microscopic tears) के कारण होता है, जिसे exercise induced muscle damage (EIMD) कहते है ।
लेकिन अगर भारी वजन उठाने से muscle damage होता है तो हमें muscle soreness हाथो हाथ क्यों नहीं पता चलती ? इसके लिये हमें muscle damage के बाद होने वाली क्षतिपूर्ति की प्रक्रिया (repairing process) को समझना होगा। आइये जानते है की मोटे तौर पर muscle damage के बाद क्या होता है?
वर्काउट के बाद हमारे शरीर को क्षतिग्रस्त मांसपेशियों (damaged muscles) के द्वारा कुछ संकेत (inflammatory signals) भेजे जाते है ताकि उन मांसपेशियों की क्षतिपूर्ति या पुनर्निर्माण की प्रक्रिया (rebuilding process) चालू हो जाये।
इन क्षतिग्रस्त ऊतकों की को हटाने के लिए कुछ विशेष कोशिकाओं (जिन्हे Macrophages कहा जाता है) को मांसपेशियों में भेजा जाता है ताकि आपकी मांसपेशियां वापस निर्माण शुरू कर सकें।
इसके बाद ब्रैडीकाइनिन (bradykinin) नामक एक अन्य पदार्थ मांसपेशियों को मरम्मत में मदद करने के लिए भेजा जाता है। ब्रैडीकाइनिन के कारण नर्व ग्रोव्थ फैक्टर की मात्रा बड़ती है और नर्व ग्रोव्थ फैक्टर हमारी तंत्रिकाओं के सिरो (nerve endings) को ज्यादा संवेदनशील बना देता है।
माँसपेशियों के आसपास स्थित इन्हीं तंत्रिकाओं के सिरो में संवेदनशीलता बहुत ज्यादा बढ़ जाने के कारण ही जब हम उस क्षतिग्रस्त मांसपेशियों को हिलाते है, तो उनमें दर्द महसूस होता है।
देखा जाये तो muscle damage वाली थ्योरी अपने आप में मायने रखती है, लेकिन जैसे जैसे विज्ञान तरक्की कर रहा है, यह पता चल रहा है कि muscle damage इस कहानी का मुख्य विलेन नहीं है, बल्कि और भी है।
Delayed onset muscle soreness की बायोलॉजी में अच्छी खासी भुमिका है, लेकिन कई और भी फैक्टर्स है जो इसके लिये जिम्मेदार है।
हम यह भी जानते हैं कि muscle soreness हमारी ट्रेनिंग, डाइट, रिकवरी, जेनेटिक्स आदि सहित अन्य कारकों से प्रभावित होती है।
Delayed onset muscle soreness का प्रमुख कारण तो अभी भी रहस्य बना हुआ है लेकिन इसमें “eccentric contraction” का बहुत बड़ा हाथ माना जाता है।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि वजन उठाते समय eccentric contraction (rep का नेगेटिव हिस्सा जिसमे हम वजन को नीचे करते है ) के दौरान मांसपेशियों में खिंचाव के कारण सबसे ज्यादा tension पैदा होता है। Eccentric muscle action के कारण होने वाले डेमेज से एक बड़ी मात्रा में soreness उत्पन्न हो सकती है।
वजन उठाने के अलावा अगर आप flat treadmill पर दौड़ने के बजाय treadmill को incline करके दौड़ते हो तो ज्यादा muscle soreness महसूस होगी क्योंकि incline करने से hips और legs की muscles पर ज्यादा eccentric stress पड़ता है।
NO PAIN NO GAIN – क्या ज्यादा muscle soreness मतलब ज्यादा muscle growth होता है?
एक समय मैं भी इस बात पर विश्वास करता था कि “muscles को पाना है, तो दर्द को अपनाना है।”
No pain no gain, Love it kill it और annihilate the muscle to grow जैसे catchphrases को बहुत ज्यादा पसंद करता था और muscle soreness को गर्व के साथ खुद पर ढ़ोता था। तब तो आदत सी थी मुझको sore रहने की।
लेकिन धीरे-धीरे समझ में आ गया कि ये सब गलत है। सच तो ये है कि muscle building के लिये कई बार तो ये muscle soreness बाधा भी बन सकती है।
ऐसा क्यों है, इसे जानने के लिये हमें सबसे पहले muscle building या hypertrophy के मॉडल को समझना पड़ेगा।
आपने कई बार सुना होगा कि “muscle growth तब होती है, जब इस इसमें एक्सरसाइज से माइक्रो-टियर्स आ जाते है और इनकी मरम्मत करके बॉडी muscles को बड़ा और ताकतवर बना देती है।” इस प्रकिया को muscle damage कहते है।
मैं भी काफ़ी समय तक इस थ्योरी को मानता रहा क्योंकि ये मुझे तर्कसंगत लगती थी। लेकिन एक बार फिर मैं गलत था।
इसमें Metabolic stress और muscle damage को muscle hypertrophy का मुख्य कारक मानने पर कई सवाल उठाए गये। लेकिन 2018 में Wackerhage और Schoenfeld ने 2010 के hypertrophy मॉडल को अपडेट किया एवं बताया कि “मैकेनिकल टेंशन ही hypertrophy का मुख्य चालक है, जबकि मेटाबोलिक स्ट्रेस और मसल डेमेज कुछ लाभदायक हो सकते है।”
जैसा कि पहले हम जान चुके है कि delayed onset muscle soreness का कारण eccentric ट्रेनिंग के कारण होने वाला muscle damage है और अभी हमने जाना कि muscle growth का प्रमुख कारण muscle damage नहीं है, तो delayed onset muscle soreness भी muscle growth का कारण नही हो सकता।
एक दिलचस्प बात यह है कि नये मैराथन रनर्स में सबसे भयानक DOMS पाये गये है, जिनका असर की 6 हफ्तों तक रहा है।
तो क्या इसका मतलब मैराथन दौड़ने से muscle growth होती है?
नही बिल्कुल भी नही।
इसके अलावा कई रिसर्चों में पाया गया है कि concentric और eccentric दोनों ट्रेनिंग का कॉम्बिनेशन muscle growth के लिये सबसे कारगर है।
लेकिन यह भी पाया गया है कि केवल concentric ट्रेनिंग से भी muscle growth हो सकती है। जबकि muscle soreness का सम्बन्ध केवल eccentric muscle action से है ना कि concentric से।
इसलिये भी कहा जा सकता है कि muscle building के लिये आपको muscle soreness की जरूरत नहीं है।
इसके अलावा भी निम्नलिखित अन्य सबूत है जो muscle soreness और muscle building के बीच की कड़ी को तोड़ते है।
- यह देखा गया है कि जो लोग किसी muscle को हफ्ते में एक बार train करते है, उन्हे उन लोगों के मुकाबले ज्यादा DOMS आते है जो हफ्ते में एक muscle को ज्यादा बार train करते है। लेकिन इसके विपरीत ज्यादा बार train करने वाले लोगों में muscle growth, एक बार train करने वाले लोगों से ज्यादा देखी गई है।
- Individual differences के कारण कई लोग बहुत ज्यादा sore हो जाते है जबकि कई लोग कम। इसका मतलब यह तो नही कि वो लोग muscle building नही कर पाते जो आसानी से sore नही होते।
- इसके अलावा कई muscle group (जैसे shoulder और forearms) ऐसे होते हैं जिन्हे बहुत ज्यादा train करने पर भी ज्यादा soreness नही आती। लेकिन फिर भी ये grow होते है। ये हमारी ताबूत में आखिरी कील थी।
Muscle building के लिये muscle soreness के पीछे दौड़ना “बहादुरों वाली बेवकूफी” है। Muscle building के लिये हमारा प्रमुख लक्ष्य ट्रेनिंग में बेहतर होना है ना कि DOMS के पीछे भागना।
क्या Delayed Onset Muscle Soreness के साथ ट्रेनिंग कर सकते है?
जब हम जान ही चुके है कि muscle soreness का मतलब muscle growth नही होता तो अब अगला सवाल यह उठता है कि क्या DOMS के साथ एक्सरसाइज कर सकते है?
आमतौर पर तो इसका जवाब “नही” ही होगा। लेकिन फिर भी यह निर्भर करता है कि muscle soreness के साथ ट्रेनिंग करने मे कितना रिस्क है।
अगर soreness का स्तर कम होता है, तो हल्की फुल्की एक्सरसाइज में कोई नुक्सान नही है, लेकिन अगर soreness बहुत ज्यादा है और आप हैवी वर्काउट करते हो तो ये किसी injury का कारण बन सकता है।
किसी भी चीज़ की “अति” हानिकारक होती हैं और muscle soreness के साथ ट्रेनिंग करना मतलब एक्सरसाइज की अति करना। जब हम पिछ्ली एक्सरसाइज की soreness से उभर रहे होते है और उसी समय फिर से वही एक्सरसाइज दोहराते हैं, तो इससे एक्सरसाइज को सहन करने की क्षमता घटती है और शरीर का उस एक्सरसाइज के प्रति adaptive response भी कम हो जाता है।
2012 के इस अध्ययन में यह देखा गया कि पिछली एक्सरसाइज से हुए muscle damage से muscles की कार्यप्रणाली में क्या अंतर आता है? इसमें रिसर्चर्स ने पाया कि targeted muscle की बल उत्पन्न (force production) की क्षमता 50 प्रतिशत तक घट गई।
इसके अलावा 2012 के एक दुसरे अध्ययन में यह पाया गया कि targeted muscle की सक्रिय होने की दर उस समय घट जाती है जब पिछ्ले वर्काउट की muscle soreness उपस्थित होती है।
इसलिये ज्यादा muscle soreness के साथ एक्सरसाइज़ करना injury को आमंत्रण देना और समय की बर्बादी मात्र होगा।
Delayed onset muscle soreness को कैसे रोकें।
यहाँ कुछ तरीके दिए जा रहे है जिनसे होने वाली muscle soreness को कम किया जा सकता है और अगली बार के लिये परफोर्मेंस को बढ़ाया जा सकता है।
- जैसा कि ऊपर बताया गया है कि eccentric contraction प्रत्यक्ष रुप से muscle soreness से जुड़ा है। इसलिये अगर ट्रेनिंग में concentric contraction और isometric contraction ज्यादा किये जाये तो इसे कम किया जा सकता है।
- कई लोग हर वर्काउट में एक्सरसाइज चेंज करते है, लेकिन muscle soreness से बचने के लिये ऐसा नही करना चाहिये क्योंकि इससे repeated bout effect कम हो जाता है जो की muscle damage से बचाने वाला शरीर का एक रक्षात्मक तंत्र है।
- ट्रेनिंग की intensity, volume और इसमें लगने वाले समय को कम करके और failure तक ट्रेनिंग ना करके भी soreness से बचा जा सकता है। समय के साथ इन चीजों को धीरे-धीरे बढ़ाए जिससे बॉडी इनको adapt कर सके।
- इसके अलावा ज्यादा तीव्र (high intensity) और शरीर पर ज्यादा प्रभाव डालने वाली (high impact) cardio एक्सरसाइज को कम करके भी DOMS से बचा जा सकता है और इससे जिम में परफोर्मेंस के कम होने का खतरा भी टल जाता है।
ये कुछ तरीके थे जिनसे muscle soreness से बचा जा सकता है लेकिन अगर soreness हो चुकी है तो आइये जानते है इसे कम कैसे करें।
Delayed onset muscle soreness को कम कैसे करें?
जिस तरह से DOMS की बायोलॉजी अभी भी अस्पष्ट है, उसी तरह इसका कोई कारगर ईलाज भी अभी तक अस्पष्ट है। कहा जाता है कि अगर आपकी ट्रेनिंग, डाइट और रिकवरी अच्छी है तो आपकी muscle soreness का दर्द तेज़ और हड्डियों तक चुभने वाला नही होगा।
इसके अलावा anti-inflammatory दवाएं इसे कम कर सकती है, लेकिन हम यहाँ मेडिकल दवाओं की बात नही करेंगे। इसके लिये आपके डॉक्टर से सलाह लिजिये।
यहां आपको कुछ तरीके बताये जा रहे है जो muscle soreness को कम करके रिकवरी की प्रक्रिया को तेज़ कर सकते है।
Active recovery (एक्टिव रिकवरी) –
Active recovery के पीछे यह धारणा है कि जब हम सक्रिय होते हैं तो रिकवरी बेहतर होती है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि low intensity एक्सरसाइज से रक्त प्रवाह (blood flow) बढता है जोकि muscle soreness को कम करने में बहुत ज्यादा फायदेमंद होता है। योग, चलना, साईकिल चलाना आदि active recovery एक्सरसाइज के उदाहरण है।
इस रिसर्च से पता चलता है कि ऐक्टिव रिकवरी ज्यादा intense training से होने वाली muscle soreness को कम करने में मदद कर सकती है।
Massage (मसाज या मालिश) –
मसाज दर्द को कम करके DOMS को रोकता है और DOMS के कारण tight हुई मांसपेशियों को आराम देता है। मसाज से soft tissues का तापमान बढ़ता है जिससे muscle रिलैक्स हो जाती है। Muscle के रिलैक्स होने से muscle fibers ढीले पड़ जाते है, जिससे movement करने मे आसानी होती है। इसके अलावा मसाज से मांसपेशियों में flexibility भी बनी रहती है।
इस रिसर्च से पता चलता है कि मसाज से DOMS और उसके कारण मांसपेशियों मे होने वाली सूजन को कम किया जा सकता है।
Foam rolling –
फ़ोम रोलिंग एक आसन तरीका है deep tissue मसाज का। इसका एक फैन्सी नाम भी है जिसे self myofascial release कहते है, जिसका मतलब मांसपेशियों में बनी गहरी गांठों को रिलिज़ करना, जो कि दर्द और कड़क मांसपेशियों का कारण होती है।
इस अध्ययन से पता चलता है कि फोम रोलिंग DOMS की गंभीरता को कम करता है और रेंज ऑफ़ मोशन को बढ़ाता है।
पर्याप्त protein लेना –
Muscle soreness को कम करने के लिये पर्याप्त प्रोटीन लेना महत्वपूर्ण हो सकता है। जैसा की ऊपर बताया था कि soreness का कारण muscle fibers में microtrauma होता है और इस trauma को रिपेयर करने के लिये शरीर को amino acids की जरूरत पड़ती है जो कि प्रोटीन के बिल्डिंग ब्लॉक्स है। जिनमें रिकवरी के लिये glutamine, arginine, leucine, isoleucine, valine खास माने जाते है।
इस रिसर्च से पता चलता है कि वर्काउट से पहले और बाद में प्रोटीन लेना muscle soreness को कम करने में मदद कर सकता है।
Anti-inflammatory foods –
जब भी मांसपेशियों में soreness या कोई भी injury होती है तो इससे inflammation (सूजन) उत्पन्न होती है और यही सूजन दर्द का कारण होती है। इसलिये anti-inflammatory foods से muscle soreness में राहत मिल सकती है। जिनमें से प्रमुख फूड्स है –
- Turmeric (हल्दी)
हल्दी भारत में पाया जाने वाला तेज़ पीले रंग का ऐसा मसाला है जिसमें सबसे ज्यादा anti-inflammatory गुण पाये जाते है। जिसका कारण हल्दी में पाये जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण घटक curcumim (कर्क्युमीन) है।
इस अध्ययन में पाया गया है कि curcumin inflammation की प्रक्रिया में भुमिका निभाने वाले अणुओं को ब्लॉक करके सूजन को कम करता है।
- Fish (मछली)
कई तरह की चर्बी वाली मछलियों (fatty fish) में असरदार omega-3 fatty acids पाये जाते है, जो की inflammation या सूजन को कम करने में बड़ी भुमिका निभाते है।
कई लोग इसके लिये मछली की जगह fish oil capsule लेते है लेकिन कई सबूत है जिनमें फ़िश को फ़िश आयल गोलियों से बेहतर बताया गया है।
निष्कर्ष (Conclusion)
कई लोग DOMS को बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण मानते है लेकिन ऐसा नही है। इसका मतलब सिर्फ इतना है कि आपने शरीर को उस चीज़ का अनुभव कराया है, जिसका शरीर आदी नही था।
कई लोगों को soreness होती है और कई लोगो को नहीं भी होती है। लेकिन इसका मतलब यह नही कि बगैर soreness वाले लोगों की muscle growth नहीं होगी।
यह मत सोचो कि अगर ज्यादा soreness नही आयी तो आपका वर्काउट प्रभावी नही था। इसके बदले एक प्रभावी ट्रेनिंग, अच्छी डाइट और पूर्ण रुप से रिकवर होने पर ध्यान दो। अगर ये तीनों चीज़े सही है तो आप sore हो या ना हो, अपने muscle building के लक्ष्य तक पहुँच ही जाओगे।