जब भी कोई मुझसे पूछता है कि फैट लॉस कैसे करें? तो calorie deficit के बाद मेरा दुसरा जवाब होता है- ” Intermittent Fasting (इंटरमिटेंट फास्टिंग)”।
वो बोलते है- “सुनने में तो काफ़ी अच्छा लग रहा है, इसमें करना क्या पड़ता है।”
मैं कहता हूँ – “इसमें 16 घन्टे fasting (उपवास) करना पड़ता है।”
बस इसी fasting का नाम सुनते ही उनके मुँह सड़ जाते है। मुझे ऐसा लगता है, जैसे मैने उन्हे जलती हुई आग का दरिया पार करने का बोल दिया हो। उनकी प्रतिक्रिया होती है – “मुझसे तो ना हो पायेगा।”
उसके बाद मैं यह कहता हूँ कि मैं तो इसे पिछ्ले 5 सालो से कर रहा हूँ। इसके बाद मैं उन्हे या तो सुपरह्यूमन दिखाई देता हूँ, या एलियन, या फिर कोई बहुत बड़ा बेवकूफ या सनकी। बाकी बातों का पता नही, लेकिन सनकी वाली बात सच है।
अगर आपको लगता है कि 16 घन्टे भूखा रहना कठिन है या फिर किसी ने आपको यह बताया है कि ज्यादा देर तक भूखे रहने से शरीर को नुकसान होता है, तो डरिये मत। Intermittent fasting जिस तरह से डिजाईन की गई है, इसकी सबसे अच्छी बात यही है कि यह हमेशा आपके हक़ में ही काम करेगी।
Fasting (उपवास) को सनातन धर्म एवं संस्कृति में आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत बताया गया है और महात्मा गाँधी ने भी इसकी ताकत से वेट लॉस के साथ भारत से अंग्रेज लॉस कर दिए थे।
Fasting के द्वारा खाने पर प्रतिबंध लगाने से आप ऐसा बेशकीमती हुनर सीख जायेंगे, जो आपकी मानसिक बाधाओं को हटाकर आपको भूख पर काबू करना सिखा देगी। इससे आप जान जायेंगे कि बार बार भूख लगना आपके शरीर की जरूरत नही, बल्कि आपके दिमाग द्वारा पैदा किया एक भ्रम है, जो आपने खाने-पीने की गलत आदतों द्वारा विकसित किया है। यह सीखते ही आपके स्वास्थ्य में चार चाँद लग जायेंगे।
Intermittent fasting कोई डाइट नही बल्कि एक सही तरह से खाने की तकनीक है। यह आपको बोरिंग डाइट से छुटकारा दिला सकती है। जिस स्वास्थ्य का मूल्य हमें रोजाना डाइट की चिंता कर-कर के चुकाना पड़े, तो ऐसा स्वास्थ्य किस काम का? लेकिन intermittent fasting आपकी इस डाइट की चिंता को हमेशा के लिये खत्म कर सकती है।
कोई भी चीज़ तब तक कठिन लगती है, जब तक कि हम उसकी प्रोसेस का ना समझे और आज मैं आपको Intermittent fasting की पूरी प्रोसेस स्टेप बाय स्टेप बताऊंगा। तो चलिये कुच करते है, जानकारी की तरफ।
इंटरमिटेंट फास्टिंग क्या है? What is Intermittent Fasting
Intermittent fasting का मूल उद्देश्य उस समय को बढ़ाना है, जिस समय हम कुछ नहीं खाते है। इसलिये इसे “time-restricted feeding (खाने का प्रतिबंधित समय)” के नाम से भी जाना जाता है। यह कोई डाइट नही बल्कि खाने का एक पैटर्न है।
इसे प्लान करते समय हमें fasting (उपवास) और eating (खाने) का निर्धारण करना पढ़ता है। इसमें इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि “कब खाना है” बजाये इसके कि “क्या खाना है”।
वैसे तो intermittent fasting के बहुत से तरीके है, जिन पर हम आगे बात करेंगे, लेकिन जो तरीका सबसे ज्यादा प्रचलित है, वह है 16:8 fasting मतलब कि आप 16 घंटे उपवास करते हैं, फिर 8 घंटे खाते हैं। जिसमें 16 घन्टे फास्ट को “fasting window” और 8 घन्टे खाने को “eating window” कहते है।
देखा जाये तो हर कोई व्यक्ति किसी ना किसी रुप में रोज़ intermittent fasting करता है। जब हम सो रहे होते है, तो हम कुछ नही खाते मतलब fasted state में होते है और जब उठते है तो खाते है, जिसे intermittent fasting कहा जा सकता है।
इसके अलावा जब आप दिन भर किसी काम में फँस जाते हो, कुछ नही खा पाते और घर जाकर खाते हो तो यह भी एक प्रकार से intermittent fasting हुई।
लेकिन इन सब तरीको से हमें फायदा इसलिये नही मिल पाता क्योंकि ये सब बनाये गये टाईम टेबल (structured time table) के हिसाब से नही है, इनमें हम संयोग से fasting करते है। अगर हमें फायदे चाहिए तो हमें fasting intermittently करनी पड़ेगी, जिसके लिये एक फिक्सड fasting का समय जरुरी है।
यदि हम खाने के समय (eating window) को थोड़ा सा कम कर दे तो हम ज्यादा fat loss, कम muscle loss, improve aging, कई बीमारियों से बचाव, आकर्षक तव्चा और अन्य स्वास्थ्य संबंधी फायदे ले सकते है।
उन लोगों के लिये जिनसे भूख सहन नही होती, intermittent fasting अभी तो एक कट्टरपंथी और क्रान्तिकारी विचार है। कई लोग जो मानते है कि ज्यादा समय तक भूखा रहना कठिन और हानिकारक है, लेकिन अभी कुछ ही मिनटों में इस भ्रम को विज्ञान की मदद से तोड़ने वाला हूँ।
जब हम कुछ नही खाते तो हमारे शरीर को समझ नही आता कि हम इसे खाना क्यों नही दे रहे? और इसके जवाब में शरीर कुछ मेटाबोलिक प्रक्रियाएँ शुरु कर देता है और होर्मोन्स के स्तर को बदलना शुरु कर देता है। यह स्थिति हमें starvation mode में डाल देती है। स्टारवेशन का मतलब होता है, भूखमरी।
अब यह भूखमरी जैसा भयानक शब्द सुनकर आपकी प्रतिक्रिया क्या होने वाली है, मैं नही जानता। लेकिन जब आप इस कुछ समय की भूखमरी के बहुत सारे फायदे जानेंगे तो खुश जरूर होंगे।
आइये जानते है कि भूख कैसे काम करती है, ताकि आप इससे आसानी से “लोहा ले सकें (deal with it)”। आखिर पापी पेट का सवाल है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग और भूख का विज्ञान – Science of Intermittent Fasting and Hunger
अभी तक तो आप यही सोचते होंगे कि जितने समय तक हमें खाना नहीं मिलेगा, उतनी ही ज्यादा हमें भूख लगेगी। लेकिन यह बात सच नही है। अगर आप भी ज्यादा भूख लगने पर “hangry (hungry+angry)” हो जाते हैं, तो यह सच आपको जानना जरुरी है।
आगे बढ़ने से पहले हमें कुछ होर्मोन्स से चिर परिचित होना पड़ेगा।
- इनमें पहला होर्मोन है “Ghrelin (घ्रेलीन)” जो मस्तिष्क को भूख लगने का संदेश देता है।
- दुसरा होर्मोन है “Leptin (लेप्टीन)” जो मस्तिष्क को पेट भरने का संदेश देता है।
- और तीसरा होर्मोन है “Insulin (इन्सुलिन)” जो हमारे खाए गये भोजन को एनर्जी में बदलता है।
वैसे तो इन्सुलिन के बहुत से कार्य है और यह हमारे शरीर के लिये बहुत ज्यादा उपयोगी है, फिर भी हम आज की कहानी का विलेन इसे ही मानेंगे।
अगर हम प्रागैतिहासिक काल को देखे तो आदिमानवो के पास ना कोई किराने की दुकान थी, ना कोई सुपरमार्केट, ना कोई सब्जीमण्डी और ना कोई फ्रिज जिसमें खाना जमा कर सकें। वो खानाबदोश लोग तो खेती करना भी नही जानते थे। वो लोग बस जानते थे – शिकार करना और पेड़-पौधों से खाना बटोरना, जिसमें बहुत ज्यादा एनर्जी खर्च होती थी।
आजकल तो हम भूख लगने पर चिप्स, बिस्किट या एनर्जी-बार कुछ भी स्नैक्स खा लेते है। लेकिन उन्हें स्नैक्स तो दूर की बात, अगर कई दिनो में भी अगर भोजन मिल जाये तो गनीमत थी।
फिर भी वो लोग कई दिनो तक भूखे रह लेते थे। क्यों? क्योंकि मानव शरीर किसी भी परिस्थिती में ढलने के लिये ही बना है। कई दिनो बिना खाये भी ऐसे ही वो लोग बचे, पनपे और विकसित हुए।
मैनें अपनी intermittent fasting की यात्रा के दौरान कई बार 24 घन्टे से ज्यादा fasting की है और मुझे व्यक्तिगत रुप से यह ज्ञात हुआ कि जब भी भूख लगे तब ही खाना खा लो यह जरूरी नही है। भूख को टालने के बाद बार-बार भूख नही लगती। कुछ समय के अभ्यास के बाद शरीर भूखा रहना सीख जाता है, जिसे “मेटाबोलिकली फ्लेक्ज़ीबल” होना कहते है।
डॉ. जेसन फन्ग ने इस आर्टिकल में एक अध्ययन का उल्लेख किया है, जिसमें सब्जेक्ट्स को 3 दिन से ज्यादा भूखा रखा गया और पाया कि भूख दिलाने वाले होर्मोन घ्रेलीन (ghrelin) में धीरे-धीरे लेकिन लगातार कमी आती गई।
हमारी भूख का नियंत्रण घ्रेलीन जैसे होर्मोन्स के हाथ में होता है और शरीर में इनका स्तर लगातार नही बढता, बल्कि ऊपर नीचे होता रहता है। जिसका शरीर आदी हो जाता है और हमें लगातार भूख नही लगने देता।
घ्रेलीन एक ऐसा होर्मोन है, जो हमारे खाने के समय के लगभग आधे घन्टे पहले ही रिलिज़ हो जाता है। जिन लोगो को दिनभर में बार-बार खाने की आदत है या सुबह जल्दी नाश्ता (breakfast) करने की आदत है, तो यह उनके उसी समय से पहले रिलिज़ हो जायेगा।
शरीर को पता है कि साहब सुबह 8 बजे नाश्ता करेंगे तो अपने को 7.30 बजे ही घ्रेलीन को रिलिज़ करना है। इसलिये नाश्ता सामने आने के आधे घन्टे पहले से ही आपको भूख का अहसास होने लग जाता है।
लेकिन अगर हम चाहे तो इस घ्रेलीन को सिर्फ दो हफ्तों की ट्रेनिंग के बाद यह सिखा सकते है कि कब रिलिज़ होना है। अगर आप 8 बजे नाश्ते की बजाये 12.30 बजे पहला भोजन लेता है, तो घ्रेलीन 12 बजे के आसपास रिलिज़ होना सिख जायेगा और आप आसानी से 12 बजे तक बिना खाये रह सकते हैं। Intermittent fasting घ्रेलीन को फ्लेक्ज़ीबल होना सिखा देती है।
जो भी व्यक्ति intermittent fasting की शुरुआत करता है उसके लिये शुरु के 4-5 दिन मुश्किल भरे हो सकते है। क्योंकि शरीर को पुरानी आदत छोड़ने और नई आदत पकड़ने में थोड़ा टाईम जरूर लगता है। लेकिन यकिन मानिये आपका शरीर अनुकूलन के इस काम में माहिर है। मेरा शरीर तो दो दिन में ही fasting के अनुकूल हो गया था।
घ्रेलीन के अलावा intermittent fasting से इन्सुलिन (insulin) का स्तर भी कम होता है। अब आप सोच रहे होंगे इन्सुलिन का भूख से क्या लेना देना है? इसके लिये पहले हम जानेगे इन्सुलिन काम कैसे करता है और फिर जानेगे इसका भूख से क्या सम्बन्ध है।
जब भी हम खाते है तो इन्सुलिन बढ़ता है और खाने से मिलने वाले कार्बोहाइड्रेट को या तो एनर्जी में बदल देता है या फिर ग्लायकोजन (glycogen) के रुप में जमा कर लेता है।
यह ग्लायकोजन मांसपेशियों और लीवर में जमा होता है और जब ग्लायकोजन की मात्रा अधिक हो जाती है, तो इन्सुलिन कार्बोहाइड्रेट को फैट (वसा या चर्बी) के रुप में जमा करता है। इन्सुलिन का मुख्य काम खाने से मिलने वाले पोषक तत्वों को सोखना और जमा करना है।
खाने के लगभग 4 से 6 घण्टों बाद इन्सुलिन का स्तर गिरने लगता है, जिससे रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर भी गिरने लगता है और इससे पैन्क्रियाज़ (pancreas) को को ग्लूकागोन (glucagon) रिलिज़ करने का मौका मिल जाता है।
ग्लूकागोन इन्सुलिन के ठीक विपरीत कार्य करता है। इन्सुलिन खाने से मिलने वाली एनर्जी को ग्लायकोजन और फैट के रुप में जमा करता है, जबकि ग्लूकागोन इस एनर्जी को ग्लायकोजन और फैट के स्टोर्स में से वापस खिंच लेता है।
आइये अब जानते है कि इन्सुलिन और भूख का क्या सम्बन्ध है।
जब हमें बाहर से खाने के द्वारा ग्लूकोज़ के रुप में एनर्जी नही मिलती है, तो शरीर के ब्लड ग्लूकोज़ की मात्रा कम हो जाती है और अगर इस दौरान इन्सुलिन का स्तर ज्यादा हो तो वह ग्लूकागोन को ग्लायकोजन एवं फैट के स्टोर्स से एनर्जी नहीं निकालने देता।
अब शरीर को तो एनर्जी की जरूरत पड़ेगी। तब इन्सुलिन भूख को बढ़ावा देता है, क्योंकि भूख ही एकमात्र ऐसा तरीका है, जिसके द्वारा हम खाना खाकर ब्लड ग्लूकोज़ का स्तर बढ़ा सके ताकि शरीर को एनर्जी मिल सके।
1986 के इस अध्ययन में पाया गया कि जब एक जानवर को इन्सुलिन का इन्जेक्शन लगाया जाता है, तो वह ज्यादा खाता है। क्योंकि इन्सुलिन भूख को बढाता है। इसी तरह अगर ग्लूकागोन का इन्जेक्शन दिया जाये तो खाने का सेवन कम हो जाता है। इसलिये ग्लूकागोन को भूख कम करने वाला हार्मोन माना जा सकता है।
जब भी हम बार बार खाते है तो इससे इन्सुलिन का लेवल कम नही हो पाता और ग्लूकागोन उसका काम नही कर पाता।
लेप्टीन (leptin) एक तृप्ति या संतुष्टि (satiety) होर्मोन है, जो हमें पेट भर जाने का सिग्नल देता है। जब हम ऐसा खाना खाते है जिससे हमें संतुष्टि मिलती है, तो लेप्टीन का स्तर बढ़ जाता है और हमें पेट भर जाने की फीलिंग आती है। लेप्टीन ही हमें बताता है कि बहुत हो गया भुक्कड़ अब बस भी कर।
लेकिन जब शरीर में इन्सुलिन का स्तर ज्यादा होता है तो यह मस्तिष्क को लेप्टीन के द्वारा दिए गये सिग्नल पकड़ने नही देता, जिससे हमें भूख लगती रहती है। कई मोटापे के मरीज़ जो बार बार खाते है उनमें लेप्टीन की कमी देखी गई है।
इन सबसे यही निष्कर्ष निकलता है कि अगर हम चाहते है कि हमें कम भूख लगे और हम दिनभर एनर्जी से भरपुर रहे तो हमें इन्सुलिन के स्तर को कम रखना पड़ेगा और इन्सुलिन को कम रखने का intermittent fasting से बढ़िया कोई साधन नही है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग के प्रकार – Types of Intermittent Fasting
1. TIME restricted fasting
इस टाईप की fasting का मतलब है कि हम रोज़ कुछ ऐसे घन्टे निर्धारित करते है जिसमे हम कुछ नही खाते। जैसा की मैंने ऊपर 16:8 वाला जो तरीका ऊपर बताया था, वह इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। इसमें आप अपने हिसाब से फेरबदल भी कर सकते है। जैसे आप 14:10 या 18:6 कर सकते है, जिसमे आपकी क्रमशः 14 या 18 घन्टे fasting window होगी और 10 या 6 घन्टे eating window होगी।
2. THE Warrior diet
फिटनेस विशेषज्ञ ओरी हॉफमेक्लर ने डाइटिंग के बारे में कई किताबें लिखी हैं और उन्होंने द वारियर डाइट बनाई, जिसे उन्होंने 2002 में प्रकाशित किया। माना जाता है कि यह प्राचीन योद्धाओं के खान-पान पर आधारित है। लेकिन इसका कोई वैज्ञानिक सबूत नही है।
यह तरीका बहुत से लोगों के लिये काफ़ी कठिन है। क्योंकि इसमें एक दिन में 20 घन्टे तक fasting या फिर बहुत ज्यादा कम खाना होता है और 4 घंटो तक खाया जा सकता है। इसमें ज़ोर दिया जाता है कि आप जंक फूड और प्रोसेस्ड फूड ना खाये।
3. EAT Stop Eat
इस तरीके को लेखक ब्रैड पिलोन ने अपनी पुस्तक Eat Stop Eat: Intermittent Fasting for Health and Weight Loss में विकसित किया था।
इसमें आप हफ्ते में एक या दो बार 24 घंटे का उपवास करते हैं और अन्य दिनों में अपना नियमित भोजन करते हैं। यह इंटरमिटेंट फास्टिंग के सभी लोकप्रिय प्रकारों में सबसे कम रिसर्च्ड किया गया तरीका है।
4. ALTERNATE Day Fasting
इस तरीके को शिकागो में इलिनोइस विश्वविद्यालय के एक न्यूट्रीशन प्रोफेसर Krista Varady, PhD द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था। इसमें हर एक दिन छोड़कर खाते है और हर एक दिन छोड़कर fasting करते है। यह intermittent fasting का एक सख्त तरीका है।
इस alternate day fasting को दो तरह से किया जा सकता है। एक जहां आप अपने fasting के दिनों में कुछ भी नहीं खाते हैं और दुसरा है modified alternate day fasting.
Modified alternate-day fasting का मतलब है कि आप अपने fasting के दिनों में अपनी कैलोरी आवश्यकताओं के 25% तक का एक छोटा भोजन खा सकते हैं। यह तरीका कई लोंगो के लिये पहले वाले से ज्यादा सरल है।
5. THE 5:2 Diet
यह intermittent fasting के सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक है। इसमें हफ्ते के 7 दिनो में से 5 दिन तो आप जो डाइट लेते है वही ले सकते है और बाकी 2 दिन fasting या फिर 500-700 कैलोरीज़ ले सकते है। यह भी intermittent fasting के दूसरे तरीकों के बराबर ही प्रभावी मानी जाती है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग के फायदे – Benefits of Intermittent Fasting
वैसे तो intermittent fasting के कई फायदे बताये जाये है। जैसे कई लोगों का मानना है कि इससे कैंसर तक ठीक हो सकता है। लेकिन यह सब उन रिसर्चो का दावा है, जो जानवरों पर की गई है। जहाँ तक कि मैं समझता हूँ कोई जानवर यह आर्टीकल नही पड़ रहा होगा, तो हम यहाँ सिर्फ उन्ही फायदो के बारे में बात करेंगे, जो इंसानों पर साबित किये गये है।
वेट लॉस के लिये इंटरमिटेंट फास्टिंग – Intermittent Fasting for Weight Loss
Intermittent fasting की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण यही है कि इससे तेज़ी से वेट लॉस होता है और शायद लोगों के लिये इसे उपयोग करने का सबसे बड़ा कारण भी यही है।
एक सफल वेट लॉस या फैट लॉस के पीछे सबसे बड़ा हाथ कैलोरीज़ का होता है, हम जितनी भी कैलोरीज़ खाते है उससे ज्यादा हमें बर्न करनी ही पड़ेगी।
जब हम intermittent fasting करते है, तो ज्यादा बार भोजन नही कर पाते, जिससे खाने वाली कैलोरीज़ अपने आप ही कम हो जाती है।
इसके अलावा intermittent fasting वेट लॉस के लिये जरुरी होर्मोन्स के स्तर में भी बदलाव करती है। जैसा की हमने ऊपर पढ़ा यह इन्सुलिन को कम करती है, जो कि एक फैट स्टोर करने वाला होर्मोन है।
साथ ही यह growth hormone (GH) के स्तर को भी बढ़ाती है, जिससे norepinephrine (नोरएफिनेफ्रिन) नामक होर्मोन रिलिज़ होता है, जो कि एक फैट बर्निंग होर्मोन हैं।
Norepinephrine हमारी फैट सेल्स को तोड़कर हमारे रक्त में फैटी ऐसिड्स को रिलिज़ करता है। जिसे हम ईंधन की तरह यूज़ कर सकते है, जिससे फैट लॉस में मदद मिलती है।
इसके अलावा ज्यादा norepinephrine का स्तर हमारे resting metabolic rate को भी बढ़ा देता है। जिससे हम बिना कोई गतिविधी किये भी ज्यादा फैट लॉस करते है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग फैट लॉस के लिये अन्य डाइट्स से बेहतर है – Intermittent Fasting vs Other Fat Loss Diets
1 . ज्यादातर लोग जो फैट लॉस करना चाहते है, वो इसलिये असफल हो जाते है क्योंकि वो कैलोरीज़ नही गिन पाते। आप जो कुछ भी खाते हैं उसका वजन करना और कैलोरी गिनना एक बहुत बड़ी परेशानी है।
लेकिन intermittent fasting बिना इस परेशानी के आपको फैट लॉस में मदद करती है। intermittent fasting बिना कैलोरीज़ को गिने ही इसलिये काम करती है क्योंकि fasting के दौरान आप कोई कैलोरीज़ नही लेते, तो खाने के दौरान आपको ज्यादा खाई हुई कैलोरीज़ की भरपाई नही करनी पड़ती।
2. फैट लॉस के जितने भी अन्य तरीके है, उन सभी में आपको जीवनशैली में बदलाव करना पड़ता है ताकि आपने जो फैट लॉस किया है उसे बरकरार रख सकें। अगर आप फिर से पुरानी खाने की आदतों को पकड़ते हो तो फिर से फैट गेन हो जाता है।
लेकिन intermittent fasting एक ऐसा तरीका है, जिसमें आपको सिर्फ एक समय चुनना पड़ता है जिसमे आप खा सको और इससे एक खाने की ऐसी लिमिट बन जाती है, जिससे आप चाहकर भी ज्यादा नहीं खा सकते।
3. Intermittent fasting में आपको जो होर्मोनल लाभ मिलता है, वो अन्य फैट लॉस डाइट में नही होता। जैसा कि हम ऊपर जान चुके है कि इससे इन्सुलिन का स्तर कम होता है और ग्रोथ होर्मोन का स्तर बढ़ता है।
4. अन्य फैट लॉस डाइट्स के मुकाबले intermittent fasting का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें हमे ज्यादा भूख नही लगती, जैसी भूख दुसरी डाइट्स में कम खाने पर लगती है। हर समय भूखा महसूस करने के बजाय आप इसमें पेट भरकर खा भी सकते है और फैट लॉस भी कर सकते है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग से ग्रोथ होर्मोन बढ़ता है – Intermittent Fasting and Human Growth Hormone (HGH)
HGH में catabolic और anabolic दोनों प्रकार के गुण पाये जाते है। एक ओर जहाँ catabolic प्रभाव के कारण, शरीर में ऊर्जा उत्पन्न करने के लिये fatty acids को release करके adipose tissue को burn करके चर्बी को कम करने में मदद करता है। वहीं दूसरी ओर anabolic प्रभाव के कारण, muscle cells के आकार को बढ़ाकर muscle building में मदद करता है।
शरीर में HGH का स्तर कम होने से muscle mass और bone mass कम होता है और fat mass बढ़ता है।
जब हम fasting करते है तो शरीर में counter-regulatory hormones का स्तर बढ़ता है, जिनमें HGH, noradrenaline और cortisol होते है। इनका काम शरीर में ब्लड ग्लुकोज को बढ़ाना होता है, जब बाहर से ग्लूकोज़ नही मिलता ताकि fasting के दौरान शरीर को एनर्जी मिलती रहे।
सोते वक्त हमारा शरीर fasting में होता है और रोज़ सुबह 4 बजे के आसपास शरीर में counter-regulatory surge होता है जिससे शरीर खुद को जागने और काम करने के लिये तैयार करता है। इसमें HGH सुबह तरोताज़ा और एनर्जी के साथ उठने में हमारी मदद करता है।
1982 के इस अध्ययन में बताया गया कि 40 दिनो तक fasting करने से शरीर में HGH का स्तर 1250% तक बढ़ गया।
इंटरमिटेंट फास्टिंग, इन्सुलिन रेज़िस्टेंस और मधुमेह से बचाव – Intermittent Fasting, Insulin Resistance and Diabetes Prevention
इन्सुलिन की बात फिर से निकली है तो मैं आपकों एक बार फिर बता देता हूँ यह काम कैसे करता है।
जब हम खाना खाते है तो मिलने वाले कार्बोहाइड्रेट को शरीर ग्लूकोज़ में तोड़ देता है और यह ग्लूकोज़ रक्त शर्करा (blood sugar) को बढ़ा देता है।
इसके बाद pancreas (अग्नाशय) से इन्सुलिन रिलिज़ होता है, जो कोशिकाओं से जुड़कर ग्लूकोज़ को अवशोषित (absorb) कर एनर्जी में बदल देता है और बचे हुए ग्लूकोज़ को फैट और ग्लायकोजन के रुप में जमा कर देता है।
शरीर में पैन्क्रियाज (अग्नाशय) का काम ब्लड शुगर को नियंत्रित करने का होता है और जब हम लगातार लम्बे समय तक खाने में ज्यादा शुगर वाले पदार्थ और प्रोसेस्ड कार्बोहाइड्रेट खाते है तो इससे ब्लड शुगर में लगातार उछाल बना रहता है।
एक समय ऐसा आता है जब इस ब्लड शुगर के उछाल को रोकने के लिये पैन्क्रियाज पर्याप्त इन्सुलिन नही दे पाता, जिससे हमारा शरीर इन्सुलिन रेज़िस्टेंस (insulin resistance) हो जाता है। और यही ब्लड शुगर में उछाल और इन्सुलिन रेज़िस्टेंस डायबिटिज़ का कारण बनता है।
Intermittent fasting के insulin resistance पर जबरदस्त फायदे देखे गये है जो ब्लड शुगर को कम करने में मदद करता है। Intermittent fasting पर हुई रिसर्चो में ब्लड शुगर और fasting insulin को कम होते देखा गया है।
इस बात से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि intermittent fasting उन लोगो के लिये फायदेमंद हो सकती है, जिनमें डायबिटिज़ डेवेलप होने का खतरा ज्यादा रहता है। लेकिन अगर आपको डायबिटिज़ है और आप fasting करना चाहते है, तो इसके पहले आपके डॉक्टर से पूछना बहुत जरुरी है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग और शरीर में इन्फ्लेमेशन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस – Intermittent Fasting, Inflammation and Oxidative Stress in Body
Inflammation (प्रदाह) एक ऐसा तरीका है, जिससे शरीर संक्रमण से लड़ता है लेकिन बहुत ज्यादा Inflammation कई बीमारियों का कारण बन सकता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि लोगों में बहुत ज्यादा खाना और बार बार खाना इस अतिरिक्त inflammation का कारण होता है।
Fasting के कारण शरीर में β-Hydroxybutyrate (BHB) नाम की ketone body बनती है, जो inflammation बढ़ाने वाले प्रोटींस (NLRP3) को रोकती है। इसके अलावा इस अध्ययन में पाया गया कि intermittent fasting के द्वारा monocytes नामक कोशिकाओं मे कमी आती है, जोकि inflammation का कारण बनती है।
इसका मतलब intermittent fasting उन लोगों के लिये फायदेमंद हो सकती है, जिन्हे डायबिटीज़, अल्जाइमर, एथेरोस्क्लेरोसिस जैसे स्वप्रतिरक्षित रोग (Autoimmune diseases) और अन्य autoinflammatory विकार है। फिर भी किसी भी रोग में डॉक्टर से पूछकर ही fasting करें।
कुछ अध्ययन यह भी दिखाते है कि Intermittent fasting फ्री रेडीकल्स से लड़ती है जिससे शरीर का ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस के खिलाफ प्रतिरोध बढ़ जाता है।
शरीर के अंदर फ्री रेडिकल्स के कारण लगातार कोशिकाओं के चोटिल होने से त्वचा में ऑक्सीडेशन की प्रक्रिया बढ़ जाती है, मतलब शरीर और खासतौर पर त्वचा तेजी से बूढ़ी होने की तरफ बढ़ने लगती है। इसके अलावा ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस अन्य बीमारियों का भी कारण बनता है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग और औटोफेजी – Intermittent Fasting and Autophagy
Fasting के दौरान हमारी कोशिकाएँ व्यस्त होती है। लेकिन कहाँ? दुसरी कोशिकाओं को खाने में। इसलिये इस प्रकिया को autophagy या self-eating कहा जाता है। लेकिन अगर हमारी कोशिकाएँ खुद ही एक दुसरे को खा जायेगी तो यह तो चिंता का विषय है।
नहीं, एक तरह से यह अच्छी चीज़ है। पुरानी कोशिकाओं का नई कोशिकाओं के द्वारा यह भक्षण मेटाबोलिक प्रकिया के तहत होता है। हमारा शरीर कुछ मेम्बरेन्स का निर्माण करती है जो मरी हुई, बीमारीग्रस्त और टुट चुकी कोशिकाओं का शिकार करती है और उनको रिसायकल करके नई कोशिकाएँ बनाती है।
यह शरीर की खुद को कोशिकीय गन्दगी से मुक्त करने की प्रक्रिया है। इसमें कोशिकाएँ अपने अंदर बने टूटे हुए, काम न आने वाले प्रोटीन को ब्रेक डाउन और मेटाबोलाइज़ कर देती है। इसी मेटाबोलिक रास्ते के जरिये कोशिकाओं से सारा जंक मटेरियल बाहर निकल जाता है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग और मस्तिष्क – Intermittent Fasting and Brain
Intermittent fasting को मस्तिष्क के स्वास्थ्य (brain health) के लिये काफ़ी अच्छा माना जाता है। fasting मस्तिष्क के लिये एक तरह का चैलेंज है, या यूँ कहें कि इससे मस्तिष्क पर stress (तनाव) पड़ता है और यह इस stress को adpat कर लेता है।
इस stress के द्वारा उतेज्जित मस्तिष्क से BDNF का स्राव होता है। BDNF (brain-derived neurotrophic factor) एक ब्रेन होर्मोन है, जो न्यूरोप्लास्टीसिटी को बढ़ाने, मानसिक प्रदर्शन को बढ़ावा देने और उम्र से संबंधित cognitive decline को धीमा करने लिए जाना जाता है।
fasting के दौरान शरीर खुद को साफ़ करने के लिये पिछ्ले दिन के खाये हुए खाने से बचे पोषक तत्वों का भी इस्तेमाल कर लेता है, जिससे उत्पन्न होने वाली प्रक्रिया को “metabolic switching” कहते है।
यह metabolic switching उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने के साथ ही मस्तिष्क में neuroplasticity को बढ़ावा देती है। इससे मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ती है और injury और बीमारियों के खिलाफ प्रतिरोधन क्षमता बढ़ती है।
Intermittent fasting करने वाले कई लोग बताते है कि इससे उनकी सोचने की क्षमता और मनोदशा भी सुधार आया है। इसके अलावा इससे “brain fog” भी साफ़ होता है जिससे दिमाग तेज़ होता है।
इंटरमिटेंट फास्टिंग और हृदय – Intermittent Fasting and Heart
2020 के इस review अध्ययन में बताया गया है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग मोटापे, उच्च रक्तचाप, डिस्लिपिडेमिया और मधुमेह सहित कई हृदय जोखिम वाले कारकों को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इसके अलावा, इंटरमिटेंट फास्टिंग को हृदय संबंधी तकलीफ के बाद बेहतर परिणाम के साथ जोड़ा गया है।
Intermittent fasting शुगर और कोलेस्ट्राल को बेहतर तरीके से metabolize करती है, इसलिये इसे heart हेल्थ के साथ जोड़कर देखा जाता है। क्योंकि इन दोनों के कारण वेट गेन और डायबीटीज़ होती है। डायबीटीज़ और मोटापा दो ऐसे कारक है जो हृदय सम्बंधित बीमारियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
क्या इंटरमिटेंट फास्टिंग से मसल लॉस होता है? Intermittent Fasting and Muscle Loss
जिन लोगों ने (जिनमें मैं भी शामिल हूँ) बड़ी मेहनत से muscles बनाई है, उनके लिये यह डर लाज़मी है कि intermittent fasting से उनकी सारी बनाई muscles गिर जायेगी। लेकिन अगर हॉलीवुड स्टार Terry Crews को देखा जाये तो ऐसा तो बिल्कुल नहीं लगता और ना ही मेरे साथ ऐसा हुआ।
देखा जाये तो यह सच भी है कि intermittent fasting से muscle loss नही होता और यह इसके सबसे बड़े फायदो में से एक है। लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि बिना खाये भी muscle loss ना हो? यह विज्ञान हमें बतायेगा।
1992 में 9 सब्जेक्ट्स (पुरूषों) पर एक दिलचस्प अध्ययन हुआ, जिसमें हर 5 मिनिट के अंतराल में 24 घण्टों तक उन लोगों का growth hormone नापा गया। ऐसा दो बार किया गया, पहली बार कण्ट्रोल मतलब खाना खिलाए हुए और दुसरी बार 2 दिन की fasting के बाद अगले दिन।
लेकिन इसे हर 5 मिनिट में क्यों नापा गया। ऐसा इसलिये क्योंकि growth hormone का स्राव शरीर में लगातार नही होता बल्कि छोटे-छोटे टुकड़ों में होता है। इस अध्ययन के दौरान growth hormone की औसत half life रक्त में केवल 18 मिनिट की थी। इसलिये रिसर्चर्स को हर 5 मिनिट में सब्जेक्ट्स के खून की जांच करनी पड़ी ताकि वो growth hormone के हर एक टुकड़े को खून से गायब होने से पहले पकड़ सके।
24 घण्टों के दौरान, खाना खिलाए हुए सब्जेक्ट्स में औसत growth hormone की मात्रा 2 माइक्रोग्राम आयी। इसके बाद जब fasting के तीसरे दिन 24 घण्टों के दौरान उन सबजेक्ट्स की जांच की गई तो उनके खून में growth hormone की औसत मात्रा 3-गुना (6.7 माइक्रोग्राम) तक बढ़ गई।
लेकिन अभी भी इस बात पर ज्यादा सबूत नही है कि growth hormone का muscle growth और muscle maintenance पर कितना प्रभाव पड़ता है। अभी तक जितने भी अध्ययन हुए है सबके परिणाम मिलेजुले है।
तो फिर muscle loss क्यों नही होता है? यह काम growth hormone नहीं करता है तो फिर कौन करता है?
जैसा कि मैनें ऊपर बताया था कि growth hormone खून (bloodstream) में ज्यादा देर नही टिकता और गायब हो जाता है। यह जब खून से लीवर में जाता है तो दुसरे होर्मोन में बदल जाता है, जिसे insulin like growth factor (IGF-1) कहते है।
विज्ञान के पास इस बात के पुख्ता सबूत है कि IGF-1 हमारी muscle growth और इसके maintenance में बहुत महत्वपूर्ण भुमिका निभाता है।
लेकिन खून में IGF-1 के सर्क्यूलेशन का स्तर बहुत ज्यादा हमारी प्रोटीन intake से जुड़ा होता है। मतलब जितना ज्यादा हम प्रोटीन खायेंगे, उतना ज्यादा IGF-1 बनेगा और Fasting के दौरान प्रोटीन ना मिलने से IGF-1 में भारी गिरावट आ जाती है।
लो भैया अब तो IGF-1 का भी विकेट गिर गया। अब कौन बचायेगा muscles का विकेट गिरने से।
रुको ज़रा सबर करो।
रिसर्च में देखा गया कि IGF-1 की मात्रा कम तो होती है लेकिन पूरी तरह से नहीं खत्म नहीं होती। जैसा कि मैंने ऊपर बताया था कि fasting से growth hormone ज्यादा मात्रा में बनता है और growth hormone की यह अधिकता लीवर पर ज्यादा IGF-1 बनाने के लिये दबाव डालती है।
हमारे शरीर को पता है कि अगर उसे प्रोटीन नही मिलेगा तो IGF-1 का स्तर गिरेगा जिससे muscles को खतरा होगा। तो शरीर अतिरिक्त growth hormone रिलिज़ करके इसकी भरपाई करता है।
इस बात का परीक्षण और पुष्टि करने के लिये 2003 में एक और रिसर्च की गई। इसमें उन्होनें 8 सबजेक्ट्स को लिया, जिनपर कण्ट्रोल मतलब खिलाने के दौरान और एक बार 40 घन्टे के फास्ट के बाद टेस्ट किया। इसके बाद तीसरा टेस्ट किया गया जिसके लिये सबजेक्ट्स को 40 घन्टे का एक और फास्ट करवाया गया। लेकिन इस बार उनको somatostatin (सोमेटोस्टेटिन) का इंजेक्शन दिया गया।
आपको बता दूं कि somatostatin एक ऐसा होर्मोन है जो कि growth hormone की रिलिज़ को रोकता है, इसलिये इसे growth hormone-inhibiting hormone (GHIH) भी कहते है।
चूँकि somatostatin का प्रभाव दुसरे होर्मोन्स पर भी पड़ता है इसलिये रिसर्चर्स ने growth hormone को छोड़कर दुसरे सभी होर्मोन्स को replace कर दिया।
इस तरह से रिसर्चर्स पता कर सकते थे कि fasting के दौरान जब growth hormone के स्तर में उछाल नही आने पर IGF-1 के लेवल के साथ क्या होगा?
सबसे पहले उन्होने खिलाए हुए IGF-1 के लेवल को नापा। इसके बाद 40 घन्टे के फास्ट के बाद नापा, जिसमे लेवल में बदलाव तो आया लेकिन बहुत ज्यादा नही। लेकिन जिन लोगो में fasting से IGF-1 का लेवल बढ़ा था और somatostatin देकर उनका growth hormone लेवल रोक दिए थे, उनके IGF-1 के लेवल में 35% (total) और 70% (free) की कमी आयी।
इन सब चीज़ो से निष्कर्ष निकालने के लिये रिसर्चर्स ने muscle protein breakdown को भी नापा। जिन लोंगो ने fasting करी और उनके growth hormone के स्तर को रोका गया था, उनके muscle breakdown करने वाले markers में 50% बढ़ोत्तरी हुई, उन लोंगो के मुकाबले जिन्होनें fasting की थी और उनका growth hormone स्तर सहज रूप में बढ़ा, मतलब रोका नही गया।
तो इससे यह पता चलता है कि जितने भी muscle benefit होते है वो growth hormone के कारण नही बल्कि IGF-1 के कारण होते है और growth hormone का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके बढे हुए स्तर के कारण IGF-1 के स्तर में इजाफा होता है।
यह था वह सिस्टम जिसे हम intermittent fasting के दौरान muscles को बचाने वाला मसीहा मान सकते है।
इसके अलावा इन दोनों अध्ययनो से पता चलता है कि अगर intermittent fasting को resistance training के साथ जोड़ने से भी muscles maas को मेंटेन किया जा सकता है।
और देखा जाये तो intermittent fasting और resistance training दोनों अच्छे साथी बन सकते है, यह इस बात से भी पता चलता है कि resistance training से muscles पर mechanical stress पड़ता है, जो mTOR जैसे muscle building pathway को सक्रिय कर देता है, जिससे आसानी से fasting के दौरान muscle breakdown होने से बचाया जा सकता है।
इसके अलावा autophagy के दौरान भी muscle loss कम हो सकता है, क्योंकि शरीर अपनी जरूरतों को जंक प्रोटीन मटेरियल से भी पुरा कर सकता है और सोचने वाली बात यह है कि जब जंक प्रोटीन मटेरियल उप्लब्ध है तो शरीर खुद की कीमती muscles का भक्षण क्यों करेगा।
इंटरमिटेंट फास्टिंग का उपयोग कैसे करें? How To Use or Practice Intermittent Fasting
वैसे तो intermittent fasting को यूज़ करने के कई नियम है। लेकिन मैं आपको बहुत सारे नियम बताकर इसे पेचिदा नही करना चाहता। जैसे किसी खास तरह के भोजन के साथ fasting तोड़े या फिर fasting के पहले कोई खास तरह का भोजन खाने के बाद fasting शुरु करें।
मै आपको वही बेसिक नियम बताऊंगा, जिनका उपयोग आप आसानी से भी कर सकते है और इसका लाभ भी उठा सकते है। इसलिये इसके कुछ मुख्य बिन्दु बता रहा हूँ, जो आपकी मदद करेंगे।
1. FASTING को कितनी देर तक करना है?
जैसे कि मैंने आपको ऊपर intermittent fasting के कुछ प्रचलित तरीके बताये थे। इनमें से किसी का भी उपयोग किया जा सकता है। लेकिन मैं जिस तरीके का सुझाव दूँगा और जिसका उपयोग करता हूँ , वह है Martin Berkhan के द्वारा प्रसिद्ध किया गया leangain model। जिसमे 16 घण्टों की fasting और 8 घन्टे की feeding या eating window होती है।
उदाहरण के लिये आप दोपहर 12 बजे से 8 बजे के बीच खा सकते है और शाम 8 से अगले दिन दोपहर 12 बजे तक fasting कर सकते है।
इसमें आप, आपके हिसाब से कोई भी समय चुन सकते है। इसमें टाइमिंग ज्यादा मायने नही रखती बल्कि उस टाइमिंग का एक जैसा होना मायने रखता है। क्योंकि हमारा शरीर की भी एक घड़ी (clock) होती है, जिसे सार्केडीयन रिदम (circadian rhythm) कहते है।
जैसा कि मैनें ऊपर बताया था कि intermittent fasting से शुरुआत में आपको कुछ समय तक परेशानी हो सकती है, लेकिन 2-3 हफ्तों के बाद यह आपके लिये आसान हो जाती है।
इसलिये मैं आपको सुझाव दूँगा कि आप fasting के घण्टों को 12 से शुरु करके धीरे-धीरे 16 तक ले आये। इसके अलावा अगर आप Autophagy और ज्यादा मेटाबोलिक फाएदे लेना चाहते है, तो इसे बढ़ाकर आप 18 से 20 घन्टे तक भी कर सकते है।
देखा जाये तो fasting के ज्यादा फायदे 16 घंटों के बाद ही शुरु होते है और अगर आप इसे 2-4 घन्टे बढ़ा देते है, तो इससे अधिकतम लाभ उठाया जा सकता है।
मेरे हिसाब से 18 घन्टे फास्ट अच्छा रहता है क्योंकि 6 घन्टे जरुरी प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व लेने के लिये पर्याप्त है। फिर भी इसे आप अपनी क्षमता और सुलभता को देखकर ही उपयोग करें। अगर आप 14 या 12 घन्टे भी fasting करते है तो फैट बर्निंग के कुछ फाएदे आपको मिल ही जायेंगे।
इसके अलावा मेरा एक और सुझाव यह है कि intermittent fasting को आप intermittently यूज़ करें। मतलब इसे कुछ दिन करें, फिर कुछ दिन नॉर्मल डाइट करें और फिर शुरु करें। इससे हमारे शरीर की किसी एक चीज़ पर निर्भरता कम हो जाती है।
2. FASTING के दौरान क्या खा-पी सकते है?
इसमें मेरा सुझाव है कि सिर्फ पानी के साथ ही fasting में डटे रहे। फिर भी अगर आप black coffee या सिर्फ green tea बिना शुगर के लेना चाहे तो ले सकते है। रिसर्च बताती है कि कॉफ़ी में पाये जाने वाले polyphenols से autophagy की प्रक्रिया बढ़ सकती है।
Fasting के दौरान ऐसी कोई भी चीज़ नही ली जा सकती जिसमें कैलोरीज़ हो या फिर जिससे इन्सुलिन में उछाल (spike) आये। इसका मतलब no food, no drink।
कई लोग BCAA का उपयोग करते है लेकिन यह fasting को तोड़ देता है। इसलिये BCAA, अमीनो ऐसिड्स, प्रोटीन या किसी भी प्रकार का कोई जूस या एनर्जी ड्रिंक ना ले।
3. FEEDING के दौरान क्या खाये?
खाने के समय पर आप अगर आप एक संतुलित आहार लेते है, जिसमें मैक्रोन्यूट्रिएंट, मिनरल और विटामिन सही मात्रा में हो, तो अच्छा रहेगा। इसके अलावा अगर आप कोई low carb या low fat या किसी भी प्रकार की अन्य डाइट लेते है, तो वह भी intermittent fasting में यूज़ की जा सकती है।
मेरा सुझाव यह है कि कुछ भी खाये उसमें जंक फूड की मात्रा ज्यादा ना हो। अगर आपकी कैलोरीज़ कम है, तो
थोड़ा बहुत खाया जा सकता है। इसमें सबसे बढ़िया आप 80/20 सिद्धांत का उपयोग कर सकते है जिसमें 80% खाना हेल्दी और 20% जंक फूड खा सकते है।
4. INTERMITTENT Fasting vs. Training
बहुत से बॉडीबिल्डर है जो intermittent fasting नही करते, फिर भी उन्हें “खाली पेट कार्डियो” करना पसंद है, क्योंकि उनका मानना है की इससे ज्यादा फैट लॉस होता है।
इस अध्ययन में बताया गया है कि खाली पेट low intensity कार्डियो से fat oxidation बढ़ जाता है, लेकिन इस अध्ययन में बताया गया है कि fat oxidation में ईंधन के रुप में जलने वाला फैट, मसल्स के अंदर के फैट (intramuscular triglyceride stores) से निकलता है ना की शरीर में जमा चर्बी (adipose tissue) से।
कुछ अध्ययन बताते है कि fasted (खाली पेट) resistance training और fed (भरे पेट) resistance training में कोई खास अंतर नही आता। इसके अलावा इस अध्ययन से पता चलता है कि खाली पेट के मुकाबले भरे पेट वर्काउट करने वाले सब्जेक्ट्स लम्बे समय तक ज्यादा intensity से वर्काउट कर पाते है।
वैसे तो विज्ञान ज्यादातर fasted training को सपोर्ट नही करता लेकिन फिर भी कुछ अध्ययन दर्शाते है कि fasted training से भी fed training की तरह ही muscle और strength gain की जा सकती है।
विज्ञान का सुझाव तो fasted training पर मिला जुला है। वैसे ही असली दुनिया में कई लोग खाली पेट एक्सरसाइज करने के दौरान खुद को वजन उठाते समय कमजोर मानते है तथा कार्डियो के समय जल्दी थक जाते है। वही दुसरी ओर मेरे जैसे लोग है, जो fasted training के दौरान ज्यादा एनर्जेटिक होते है और पर्याप्त वजन उठा लेते है।
मेरा अनुभव है कि fasted training के दौरान कोई muscle या strength लॉस नही होता और ना ही जल्दी थकान या कमजोरी होती है। लेकिन मैनें इससे कभी ज्यादा फैट लॉस होते हुए नही देखा।
अगर मैं intermittent fasting के दौरान भी calorie surplus में होता हूँ, तो आसानी से muscle gain कर लेता हूँ और calorie deficit में फैट लॉस।
Intermittent Fasting के दौरान ट्रेनिंग कैसे करें?
Fasted training का एक फायदा यह है कि, ट्रेनिंग के बाद शरीर की मसल्स में ग्लायकोजन को फिर से भरने की क्षमता अच्छी हो जाती है। इसलिये हो सके तो ऐसे समय ट्रेनिंग करें जब आप fast तोड़ने वाले हो, जिससे आपका पहला भोजन आपका “प्री वर्काउट मील” बन जायेगा जो शरीर को पोषक तत्व अच्छी तरह सोखने में मदद करेगा।
इसके अलावा ज्यादा से ज्यादा पानी पिए और खुद को hydrated रखें क्योंकि डिहाईड्रेशन से एक्सरसाइज की परफॉरमेंस और उससे होने वाले प्रभाव (Adaptation) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
Intermittent Fasting के दौरान Muscle Building कैसें करें।
Muscle building के लिये हमें calorie surpluse में होना जरुरी है और intermittent fasting के दौरान ज्यादा कैलोरीज़ खाना कठिन हो सकता है, इसलिये कोशिश करें कि हर meal में ज्यादा से ज्यादा कैलोरीज़ ले सकें।
इसके अलावा muscle building के लिये प्रोटीन बहुत जरुरी होता है और इसमें उपस्थित अमीनो एसिड “leucine (ल्युसिन)” muscle protein breakdown को रोकने और muscle protein synthesis के लिये बहुत जरुरी होता है।
इसलिये कोशिश करें कि हर एक meal के साथ 30-40 ग्राम प्रोटीन ले सके, जिससे 3-4 ग्राम ल्युसिन मिल जायेगा जो muscle building के लिये muscle protein synthesis को बढ़ा देगा।
Intermittent fasting के दौरान muscle building के लिये मैं जो रणनीति अपनाता हूँ, वह यह है कि आप intermittent fasting को intermittently उपयोग करें।
मुझे जब भी muscle growth करना होता है तो हफ्ते में तीन या चार दिन 16 घन्टे fasting करता हूँ और बाकी दिन नॉर्मल डाइट पैटर्न लेता हूँ, जिससे ओवरऑल calorie surplus बना सकूँ। या फिर fasting एक महीने छोड़ देता हूँ, जिससे इस समय calorie surplus बनाकर ज्यादा से ज्यादा muscle growth कर सकूँ।
क्या महिलाएँ इंटरमिटेंट फास्टिंग कर सकती है? Intermittent Fasting vs. Women
“क्या महिलाएँ intermittent fasting कर सकती है?” ऐसा सवाल पूछने का अधिकार तुम्हे किसने दिया? क्या तुम पुरूषों और महिलाओं में भेदभाव करना चाहते हो?
देखा जाये तो यह भेदभाव हमने नही बल्कि दोनों की अलग-अलग बायोलॉजी ने किया है। महिलायें intermittent fasting कर सकती है, लेकिन उन्हें पुरूषों के मुकाबले ज्यादा सावधानी बरतनी पड़ती है।
2016 के इस अध्ययन में बताया गया है कि “उपवास को एक सुरक्षित चिकित्सा के साथ-साथ एक जीवन शैली के रूप में निर्धारित किया जा सकता है जो महिलाओं के स्वास्थ्य में कई गुना सुधार कर सकता है।”
लेकिन कुछ ऐसे भी सबूत है जो बताते है कि intermittent fasting महिलाओं के लिये पुरूषों जितनी लाभकारी नही होती।
अनौपचारिक रुप से कई महिलाओं का कहना है कि उनका मासिक धर्म (menstruation cycle) तब रुक गया जब उन्होंने intermittent fasting करना शुरू किया और अपने पिछले खाने के पैटर्न को फिर से शुरू करने पर वापस सामान्य हो गया।
मादा चूहों पर किए गए अध्ययनों में पाया गया है कि intermittent fasting से मादा चूहे कमजोर, मर्दाना, बांझ हो सकते हैं और यह उनके मासिक चक्र छूटने का कारण बन सकती हैं। ऐसा माना जाता है कि चूहों की बायोलॉजी इन्सानो की तरह ही होती है।
जबकि 1994 के इस अध्ययन में बताया गया था कि “गहन मेटाबोलिक परिवर्तनों के बावजूद, कूपिक चरण के दौरान 72 घंटे का फास्ट सामान्य मासिक चक्र वाली महिलाओं के मासिक धर्म चक्र को प्रभावित नहीं करता है।
विकासवादी चश्में से देखा जाये तो प्रजनन में पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं का ज्यादा महत्व होता है और गर्भ धारण के लिये उनके प्रजनन तंत्र का स्वस्थ होना बहुत ज्यादा जरुरी है।
इसी प्रजनन तंत्र में बच्चे को ढोने के लिये अलग से रिज़र्व होते है, जिसके कारण शरीर fasting के दौरान खाना ना मिलने पर आक्रमक प्रतिक्रिया अपनाकर भूख के सिग्नल ज्यादा तेज़ी से भेजता है।
इन सब के अलावा इस अध्ययन में यह भी देखा गया कि fasting से पुरुषों में insulin sensitivity में सुधार हुआ, लेकिन महिलाओं में ब्लड शुगर का नियंत्रण बिगड़ गया।
जो भी महिलायें intermittent fasting करना चाहती है, उन्हे थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए और इसका अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिये और कोई परेशानी दिखने पर तुरंत इसे रोक देना चाहिये।
इसके अलावा precisionnutrition.com के इस बढ़िया अंग्रेजी आर्टीकल में महिलाओं के लिये intermittent fasting से सम्बंधित सारी जानकारी दी गई है, इसलिये इसे जरूर पढ़े।
क्या इंटरमिटेंट फास्टिंग सुरक्षित है? Safety and Side Effects of Intermittent Fasting
इतिहास की तरफ देखें तो मनुष्य ने हमेशा से उपवास रखा है। यदि आप स्वस्थ और सुपोषित हैं तो कुछ समय के लिए बिना भोजन के रहने में कुछ भी खतरनाक नहीं है।
मैं करीब पाँच वर्षों से अधिक से intermittent fasting कर रहा हूँ और आजतक कोई खतरनाक साइड इफेक्ट नही देखा।
लेकिन यह जरुरी नही कि हर किसी की intermittent fasting पर एक जैसी प्रतिक्रिया हो। कई लोग जो जवान है, उन पर यह अलग तरह से काम करेगी। इसी तरह बुढ़े, मध्यम उम्र और महिलाओं पर यह अलग तरह से काम करती है। किसी को साइड इफेक्ट दिख सकते है, किसी को नही भी।
इसके सबसे आम साइड इफेक्ट में भूख और चिड़चिड़ापन हो सकता है लेकिन ऐसा intermittent fasting के अलावा किसी भी अन्य वेट लॉस डाइट में भी हो सकता है।
इसके अलावा कुछ लोगों में intermittent fasting हानिकारक भी हो सकती है, जिन्हे यह नही करना चाहिये।
Intermittent Fasting किन्हें नही करना चाहिये।
- अगर आपको कोई बीमारी है जैसे डायबिटीज़ वगेरह है तो बिना डॉक्टर से पुछे Intermittent Fasting नही करना चाहिये।
- गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाएं जिन्हे ऊर्जा और दूध उत्पादन के लिए भोजन की आवश्यकता होती है।
- बच्चे और किशोरों में विकास की प्राकृतिक अवधि के दौरान, fasting शायद एक अच्छा विचार नहीं है।
- वृद्ध व्यक्ति जिनमें उम्र बढ़ने के दौरान अक्सर भूख कम हो जाती है, और कई बड़े वयस्कों को पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिलते हैं। Fasting से पर्याप्त ऊर्जा और महत्वपूर्ण पोषक तत्व प्राप्त करना और भी कठिन हो जाता है।
- कम वजन वाले लोग। यदि आप पहले से ही कम वजन के हैं, तो वजन घटाने को बढ़ावा देने वाले आहार पर जाना एक बुरे विचार की तरह लगता है।
- इन सब के अलावा अगर आपको कोई eating disorders है तो भी fasting हानिकारक हो सकती है।
निष्कर्ष (Conclusion) – क्या आपको Intermittent fasting करना चाहिये?
जैसे कि हम intermittent fasting के कई फायदे जान चुके है, लेकिन इसका उपयोग रामबाण समझकर ना करें, खासकर फैट लॉस के लिये बिल्कुल भी नहीं। क्योंकि कई लोग है जो intermittent fasting नही करते फिर भी वेट लॉस या फैट लॉस करते है।
Intermittent fasting कोई जादू नही बल्कि खाने का एक ऐसा पैटर्न है, जिसमें आप कैलोरीज़ पर लगाम लगाना आसान हो जाता है। कई लोगों के लिये यह जादू जैसा काम कर सकती है और कई लोगों के नहीं भी।
हालांकि इसके वेट लॉस के अलावा अन्य स्वास्थ्य संबंधी फायदे भी है, लेकिन यह सब फायदे आप एक स्वस्थ जीवनशैली और खाने की अच्छी आदतों को अपनाकर भी ले सकते है।
अगर अब भी आप सोचते है कि “आपको intermittent fasting करनी चाहिये या नही?” तो यह तो आपको इसे करके ही पता चलेगा कि यह आपके लिये फायदेमंद साबित होती है या नही।