All About Weightlifting For Kids In Hindi | Gym जाने की सही उम्र क्या है और क्या कम उम्र में weightlifting से height रुकती है?

Weightlifting for Kids in Hindi
Weightlifting for Kids in Hindi

क्या आपको भी कभी आपके 16 साल से छोटे बच्चे ने कहा है कि “मुझे जिम जाना है और फलाने की तरह बॉडी बनाना है?”

लेकिन आपको तो बताया गया है कि अगर इसे अभी से जिम भेज दिया तो इसकी हाइट रुक जायेगी, या बौना ही रह जायेगा। या फिर आप इस बात से डरते है की जिम में उसने कोई हड्डी तोड़ ली या उसे कोई नुक्सान न पहुँच जाये। 

अगर उसका कद नही बढ़ा तो लोग उसे छोटू बोल के चिढ़ाएंगे या फिर आप उससे पंखे साफ़ नही करवा पायेंगे। और इसी चिंता के साथ आप उसके जिम जाने के सपने पर पानी फेर देते है।

वर्तमान में मोबाईल, वीडियो गेम, टेलीविजन, कंप्यूटर आदि के साथ, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बच्चे अधिक वजन वाले और निष्क्रिय होते जा रहे हैं। स्वस्थ और सक्रिय जीवन शैली के महत्व के बारे में छोटे बच्चों को शिक्षित करना महत्वपूर्ण है। 

कई माता पिता जो बच्चे को सक्रिय और स्वस्थ देखना चाहते है, बच्चे को दिनभर मोबाइल, वीडियो गेम्स और नेटफ़्लिक्स जैसी चीज़ो में घुसा देखकर उन्हे लगता है कि इनके चार्जर और HDMI केबलों से बच्चे के हाथ पैर बांधकर उस आलसी को जिम में खदेड़ कर ले जाये।

लेकिन फिर इसी ख्याल से रुक जाते है कि जिम में उसे कोई नुक्सान ना हो या उसका शारिरीक विकास ना रुक जाये? 

अगर आपको भी यही सवाल डराता है तो इस आर्टीकल को पढ़ने के बाद चैन की साँस ले पायेंगे। 

इसमें आप जानेगे कि जिम में वजन उठाना उतना भी खतरनाक नही जितना लोग सोचते है और यह शारिरीक विकास को बाधित नही करता, जैसे की हाइट का ना बढ़ना। 

वजन उठाने से हाईट के ना बढ़ने में उतनी ही सच्चाई है, जितनी सच्चाई काली बिल्ली के रास्ता काटने से होने वाले दुर्भाग्य में है। 

बल्कि जिम में वजन उठाना बच्चे को शारिरीक और मानसिक रूप से स्वस्थ एवं मजबूत बना सकता है। 20 साल का होने तक वह ऐसा शरीर बना सकता है, जिसे देखकर दुसरे किशोरावस्था वाले बच्चे उससे प्रेरणा ले सकें।

हालांकि इस बात का ध्यान जरूर रखे की बच्चों की ट्रेनिंग किसी अच्छे कोच या फिटनेस एक्सपर्ट की निगरानी में हो। इस विषय पर भी हम आगे आर्टीकल में बात करेंगे। 

क्या weightlifting बच्चों के लिये असुरक्षित है ? 

ऐसा कई बार देखा गया है कि बच्चे weightlifting करते समय चोटिल (injured) हो जाते हैं। इन्ही को देखते हुए 1990 में अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने यह सुझाव दिया कि बच्चों को तब तक weightlifting नही करना चाहिये, जब तक कि वे शारिरीक रुप से परिपक्व न हो जाये।

इसके बाद कई पैरेंट्स यह मानने लगे कि जिम में जाकर weightlifting या strength training करना उनके बच्चों के लिये खतरनाक हो सकता है। लेकिन रिसर्च बताती है कि weightlifting अन्य खेलों के मुकाबले काफ़ी सुरक्षित है। 

2017 में बीस अध्ययनों की एक रिव्यू स्टडी की गई जिसमें injury होने का खतरा बहुत कम पाया गया। इसमें बताया गया कि बॉडीबिल्डिंग से 1000 घन्टे की ट्रेनिंग पर केवल 0.24 से 1 इन्ज्युरी हो सकती है। 

इसे आसान भाषा में समझा जाये तो मतलब है कि आप हर हफ्ते अगर 5 घन्टे weightlifting करते है, तो आपको लगभग 4 साल लग जायेंगे किसी injury का अनुभव होने में। 

इसके अलावा शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि यह injuries ज्यादातर मामूली दर्द ही होती है। जिन्हें ठीक करने के लिये किसी विशेष प्रकार के उपचार या रिकवरी तकनीकों की कोई आवश्यकता नहीं होती। 

फुटबॉल, बास्केटबॉल और रग्बी जैसे अन्य लोकप्रिय खेलों में कई प्रकार की चोटें (cuts, bruises, broken bones, sprains, tears आदि ) लगने का खतरा weightlifting के मुकाबले अधिक होता है। 

बच्चों के लिये weightlifting या strength training तब ही खतरनाक हो सकती है, जब इसे सही तरीके से न किया जाये। 

क्या weightlifting से बच्चों की हाइट रुकती है ? 

यह एक ऐसा डर है जो कई लोगों के मन में हमेशा ही बना रहता है कि weightlifting से बच्चे की हाइट रुक जायेगी। यह डर 1970 में प्रकाशित जापानी मजदूर बच्चों पर की गई एक रिसर्च से पैदा हुआ। 

इस रिसर्च में पाया गया कि वह बच्चे जो ज्यादातर भारी सामान लाना ले जाना करते थे, उनका कद औसत से छोटा था। जिससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि बच्चों में weightlifting से शारिरीक विकास बाधित हो सकता है।

लेकिन ऐसे कोई वैज्ञानिक सबूत या अधययन नही है, जो इस रिसर्च की प्रामाणिकता को साबित कर सके। बल्कि इसे कई अध्ययनो से इसे गलत साबित कर दिया। 

प्रायः यह भी देखा जाता है कि ज्यादातर weightlifters का कद छोटा होता है और लोगो ने इससे भी यह निष्कर्ष निकाला कि उनकी कम हाइट के पीछे भी weightlifting ही मुख्य कारण है। 

लेकिन इस बात का भी कोई वैज्ञानिक आधार नही है। इस बात को मानना कि weightlifters का छोटे होने का कारण weightlifting है, ठीक उसी प्रकार है, जिस प्रकार यह मानना कि बास्केटबॉल खिलाड़ी उछलने-कूदने के कारण लम्बे होते है। 

सच तो यह है कि Weightlifting में छोटी हाइट वाले लोगों को लम्बे लोगों की तुलना में ज्यादा फायदा मिलता है, क्योंकि लम्बे लोगों द्वारा वजन को उठाते समय, भारी वजन को एक स्थान से दुसरे स्थान तक ले जाने में ज्यादा दूरी तय करना पड़ती है। जबकि छोटे लोगों के लिये यह आसान बन जाता है। 

किसी भी खेल के कारण एथलीट का शारिरीक आकार छोटा या बड़ा नही होता, बल्कि उस खेल में उपयुक्त शारिरीक बनावट के रणनीतिक फायदे के कारण लोग वह खेल चुनते है। 

इसके अलावा डॉक्टर्स ने भी weightlifters का छोटा कद देखकर पहले जितना ही गलत निष्कर्ष निकाला, लेकिन इस बार उनका “गलत निष्कर्ष” थोड़ा वैज्ञानिक था। 

उन्होनें माना कि weightlifting से हड्डियों के बीच पायी जाने वाली epiphyses या ग्रोव्थ प्लेट्स (growth plates) को नुक्सान पहुँचता है। इन ग्रोव्थ प्लेट्स को epiphyseal plate कहा जाता है।

“ग्रोव्थ प्लेट्स को नुकसान पहुँचना” यह सुनने में काफ़ी गम्भीर प्रतीत होता है और इतना गम्भीर तो है ही कि आसानी से किसी भी माता-पिता या पैरेन्ट्स को डरा सके।

यह ग्रोव्थ प्लेट्स बच्चों के शारिरीक विकास की प्रक्रिया की दौरान नरम होती है, और जब बच्चा शारिरीक रुप से परिपक्व हो जाता है तो यह प्लेट्स कड़क होकर हड्डियों में बदल जाती है। बच्चों में नरम होने के कारण इनमें चोट लगने का खतरा अधिक होता है। 

इन प्लेट्स में चोट (injury) लगने से समय से पहले ही epiphyseal closure हो जाता है, जिससे हड्डियों के चोटिल जोड़ (damaged joints) बढ़ना बंद कर देते है, जिसे premature bone fusion या epiphyseal fusion कहते है। 

लेकिन देखा जाये तो epiphyses damage दुर्लभ है और यह इतनी आसानी से नही होता, जब तक कि आपका बच्चा खुद को स्पाईडरमैन समझकर हवा में एक बिल्डिंग से दुसरी बिल्डिंग पर झुल्ने की कोशिश करे।

2010 में जर्मन स्पोर्ट यूनिवर्सिटी में एक मेटा एनालिसिस किया गया, जिसमें ने पाया गया कि weightlifting का हाइट पर कोई प्रभाव नही पड़ता, जबकि बच्चों ने 6 साल की उम्र से weightlifting शुरु कर दी। 

इसके अलावा 2011 में फ्रांसीसी वैज्ञानिकों द्वारा किये गये इस अध्ययन से भी यही साबित होता है कि ट्रेनिंग का विकास पर कोई प्रभाव नही पड़ता। 

ऐसे ही कई और भी सबूत है, जो बताते है कि weightlifting से हाइट को कोई नुकसान नही होता है। इसलिये अगर आपका बच्चा आपको जिम में जाकर वजन उठाने के लिये कहे, तो आप कभी उसे इसे डर से ना रोके कि उसकी हाइट या शारिरीक विकास रुक जायेगा।

बच्चों के लिये weightlifting की सही उम्र क्या है ?

जैसा कि मैंने ऊपर बताया था कि पहले तो अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने यह सुझाव दिया था कि बच्चों को तब तक weightlifting नही करना चाहिये, जब तक कि वे शारिरीक रुप से परिपक्व न हो जाये। लेकिन बाद में उन्होनें इसमें बदलाव किया। 

अब उनका कहना है कि “7 से 8 साल की उम्र में संतुलन और पॉश्चर नियंत्रण करने का कौशल वयस्क स्तर तक परिपक्व हो जाता है, इसलिये यह तर्कसंगत है कि उन कौशलों की उपलब्धि से पहले स्ट्रेन्ठ प्रोग्राम्स को शुरू करने की आवश्यकता नहीं है।”

मतलब 7 से 8 साल की उम्र में बच्चा weightlifting शुरु कर सकता है। क्योंकि 5 साल की उम्र से पहले बच्चे सिर्फ फंडामेंटल मोटर स्किल्स सीखते है और हरकतों का समन्वय करने के लिये आवश्यक न्यूरोमस्क्युलर पाथ्वेज़ (neuromuscular pathways) का निर्माण होता है।

इसके बाद ही उसे किसी विशेष प्रकार की स्किल सिखायी जानी चाहिये। तो 7 से 8 साल की उम्र तक बच्चे को weightlifting या strength training से संबंधी फंडामेंटल स्किल्स सीखा सकते है। 

अमूमन यह माना जाता है कि weight training से सबसे ज्यादा फायदा 13 साल की उम्र के बाद लिया जा सकता है। क्योंकि 12 साल के बाद बच्चों में puberty (यौवनारंभ) शुरु होती है और 13 की उम्र तक उनके नर्वस सिस्टम और मांसपेशियां का विकास उस स्तर तक हो जाता है, जिस स्तर तक वह फंडामेंटल से बढ़कर कठिन ट्रेनिंग झेल सकें। 

13 साल से कम उम्र के बच्चों में भी ताकत बढ़ सकती है लेकिन यह ताकत मुख्यतः उनमें न्यूरोजनिक एडाप्टेशन के कारण होती है, ना कि मांसपेशियो के बढ़ने की वजह से। 

इसलिये अगर किसी बच्चे का लक्ष्य मसल्स को बढ़ाना है तो उन्हे 13 के बाद ही muscle building के लिये तैयार की गई ट्रेनिंग लेनी चाहिये। क्योंकि 13 से पहले शरीर में टेस्टोस्टेरोन जैसे मसल बिल्डिंग होर्मोन्स का भी अभाव होता है, जो कि मांसपेशियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भुमिका निभाते है। 

देखा जाये तो 13 से कम उम्र के बच्चे भी weightlifting या strength training से कई तरह के फायदे ले सकते है। इसलिये यह जरुरी नही की 13 की उम्र होने तक weightlifting ना की जाये। 

बच्चों को weightlifting से क्या-क्या फायदे हो सकते है ?

अगर बच्चों को सही प्रशिक्षण दिया जाये तो बहुत सी रिसर्च यह बताती है कि उन्हें निम्नलिखित लाभ हो सकते है। 

  1. ताकत का बढ़ना (increase in strength)।
  2. हड्डियों का मजबूत होना ( bone strength index और bone mineral content का बढ़ना )। 
  3. टेंडन का मजबूत होना (increase in tendon strength)। 
  4. शरीर की चर्बी कम होना (reduction in body fat)। 
  5. सेंट्रल नर्वस सिस्टम का मजबूत होना (strengthen the central nervous system)।
  6. न्यूरोमस्क्युलर कॉर्डीनेशन का बेहतर होना (improved neuromuscular coordination)।
  7. चोटिल होने से बचाव (injury prevention)।
  8. आत्म सम्मान का बढ़ना (increase in self-esteem)।
  9. एथलेटिक परफोर्मेंस का बढ़ना (increase in athletic performance)।
  10. मानसिक स्वास्थ्य और अच्छी आदतें बढ़ना (increase in mental health and healthier habits)।

शारीरिक गतिविधि बच्चों को मानसिक स्पष्टता विकसित करने में मदद करती है, वह कम तनाव महसूस करते है और यह उनकी एनर्जी का सदुपयोग करने का मार्ग प्रदान करती है। 

इन सब के अलावा रिसर्च यह भी बताती है कि जो बच्चे फिट होते है, उनमें स्वास्थ्य संबंधी खतरे भी कम होते है और कई प्रकार की बुरी आदतों (जैसे नशे का सेवन करना आदि) से दूर रहते है।

कुछ रिसर्च बताती हैं कि जो बच्चे शारीरिक रूप से फिट होते हैं, वे कम फिट बच्चों की तुलना में स्कूल में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। सबसे बड़ी बात ऐसे बच्चे खुश और स्वस्थ रहते है।

Weightlifting or Strength Training For Kids 

बच्चों को weightlifting कराते समय पालन किये जाने वाले निर्देश 

  1. किसी भी weightlifting या strength training सेशन के दौरान बच्चे पर कोच या  सर्टीफाईड फिटनेस एक्सपर्ट की निगरानी होनी चाहिये। 
  2. बच्चो का मानसिक रुप से इतना परिपक्व होना चाहिये कि वे कोच की सलाह को समझ सके और उनका पालन करें। 
  3. सभी एक्सरसाइज में सही फॉर्म और तकनीक का इस्तेमाल किया जाना चाहिये। ताकि इससे इन्ज्युरी या चोट लगने के अवसर कम हो सकें।
  4. छोटे बच्चों को ज्यादा वजन (maximal lifts) या तेज़ी से वजन (explosive lifts) उठाने को अवोइड करना चाहिये। 
  5. अगर बच्चे को पहले से कोई चोट या इन्ज्युरी हो तो मशीनों या केबलों का उपयोग करें या फिर कोई वजन ना उठाए। जब तक कि इन्ज्युरी पूरी तरह से ठीक ना हो जाये। 

बच्चों का वर्काउट किस प्रकार का होना चाहिये ? 

जिस तरह हम अभी तक जान चुके है कि बच्चों को weightlifting या strength training कराने में सबसे बड़ा डर माता- पिता को यही होता है कि उसे कोई इन्ज्युरी ना हो।

जब हम जान चुके है कि weightlifting बच्चों के लिये सुरक्षित है, इससे हाइट नहीं रुकती और यह उनके लाभकारी है। तो हमें यह भी जानना जरुरी है कि यह सब सिर्फ एक अच्छे तरह से डिजाईन किये गये प्रोग्राम से ही संभव हो सकता है।

खराब तरीके से डिजाइन किया गया और खराब या बिना निगरानी वाला प्रोग्राम बच्चों के लिये समान रूप से हानिकारक भी हो सकता है। 

वैसे तो बच्चों को किसी अच्छे कोच की निगरानी में ही ट्रेनिंग करानी चाहिये। लेकिन कई बार टीनेजर्स (या 13 साल से बड़े बच्चे) किसी और का workout कॉपी कर लेते है, जिसमें ज्यादा volume और intensity technics इस्तेमाल होती है।

जिसका नतीजा यह होता है कि उन्हे गम्भीर मसल सोरनेस (muscle soreness या DOMS) का सामना करना पड़ता है। DOMS का यह अनुभव कई बच्चों के लिये इतना असहज होता है कि अगली बार वो इस दर्द को सहन करने का सोच भी नही सकते। इसलिये इसके बाद वह कभी ट्रेनिंग की तरफ मुड़कर नही देखते।

इसलिये बच्चों को weightlifting या strength training स्टार्ट करवाते समय कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

  1. ऐसा वर्काउट प्रोग्राम बनाये जो बच्चों के नर्वस सिस्टम पर ज्यादा भारी ना पड़े और किसी भी musculoskeletal इन्ज्युरी से बचा जा सकें।
  2. वर्काउट प्रोग्राम ऐसा होना चाहिये जिसमें सभी मांसपेशियों को कवर किया जा सके। 
  3. इन प्रोग्राम्स में धीरे-धीरे प्रोग्रेस (progressive overload) करने के तरीके शामिल हो।
  4. किसी भी प्रोग्राम में इन्ज्युरी से बचने के लिये शुरु में वार्म-अप और बाद में कूल-डाउन एक्सरसाइजेस का होना जरुरी है। 

इन बातों के अलावा कुछ चीजें है, जिन पर हम थोड़ा विस्तार से बाते करेंगे। आइये जानते है –

पहला चरण : 

बेसिक बॉडीवेट एक्सरसाइज से शुरुआत करें। 

Start with Basic Bodyweight Exercises

किसी भी बच्चे को ट्रेनिंग की दुनिया से रुबरु कराने से पहले उसे बेसिक जानकारी दी जानी चाहिये। उसे पता होना चाहिये कि कौन सी एक्सरसाइज कब, क्यों और कैसे काम करती है। 

किसी को भी कम उम्र में ट्रेनिंग की शुरुआत करने का सबसे प्रभावी तरीका है अच्छी प्रकार से बनाया गया bodyweight exercises workout routine।

इस प्रकार का रूटीन शुरुआती ताकत (base strength), शारिरीक जागरुकता (body awareness), मांसपेशियों का समन्वय (muscular coordination) और कंडिशनिंग के लिये बेहतर होता है।

Bodyweight exercises बच्चों को इस तरह से कंडिशन या तैयार करती है कि वे आगे जाकर किसी भी weightlifting या strength training प्रोग्राम को सहन कर सकें। 

किसी भी ऐसे प्रोग्राम की तरफ जाने से पहले जिसमे ज्यादा ईंटेंसिटी, ज्यादा रेप्स और ज्यादा वजन का इस्तेमाल होता है, बच्चों के शरीर का मजुबत होना जरुरी है। Bodyweight exercises से टेंडन, लिगामेंट्स और  मांसपेशियों को सपोर्ट करने वाली अन्य छोटी-छोटी सरंचनाओ को मजबूती मिलती है।

इसके अलावा bodyweight exercises संतुलन बनाने और इंट्रा मस्क्युलर कोओर्डीनेशन बनाने मे मदद करती है। उदहारण के लिये अगर कोई व्यक्ति bodyweight squats नही लगा सकता, तो वह कन्धे के ऊपर वजन रखकर स्क्वैट (weighted squats) कैसे लगा पायेगा। 

Sample Three Days A Week Bodyweight Routine For Kids – (Monday – Wednesday – Friday)

  1. Bodyweight squats – 2 sets – 10-15 reps
  1. Push-ups – 2 sets – 10-15 reps
  1. Pull-ups – 2 sets – 10-15 reps
  1. Burpee – 2 sets – 10-15 reps
  1. Plank – 2 sets – 10-15 reps

यह workout दिखने में काफ़ी साधारण सा लगता है लेकिन नये बच्चों के लिये प्रभावी है, जिन्होने कभी कोई ट्रेनिंग नही की। 

शुरुआत में कई बच्चों के लिये केवल एक push-up या pull-up लगाना भी कठिन हो सकता है। इसलिये उन्हे असिस्ट करते हुए सही फॉर्म और तकनीक सिखाये और धीरे-धीरे प्रोग्रेस करवाये। जब वह दी गई रेप रेंज और सेट्स तक पहुँच जाये, तो एक-एक सेट्स और बढ़ा दें। 

दुसरा चरण :

वजन उठाना शुरु करें।

Transition to Free Weights (Dumbbell/Barbell), Cable and Machines

जब हमारे छोटे पहलवान bodyweight exercises पर महारत हासिल कर लें और वजन उठाने के लिये आवश्यक कंडिशनिंग, ताकत और संतुलन प्राप्त कर ले तो उन्हें जिम में ट्रेनिंग करवायी जा सकती है।

सबसे पहले वजन उठाते समय barbells के साथ dumbbells का ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया जाना चाहिए। क्योंकि दाएँ और बाएँ दोनों तरफ से संतुलन बनाने के लिये dumbbells, barbells से ज्यादा प्रभावी होते है। 

अब उन्हें bodyweight squats की जगह dumbbell के साथ goblet squats या खाली या कम वजन वाली barbell के साथ back squats लगाना सिखा सकते है।

इसी प्रकार barbell या dumbbell के साथ bench press और केबल और मशीनों के साथ lat pulldown और cable row जैसी एक्सरसाइज करवा सकते है। 

छोटे बच्चों को weightlifting या strength training करवाते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि उन्हें किसी प्रकार की intensity techniques ना करवायी जाये। 

उन्हे शुरुआत में basic lifts (जैसे squats, bench press, deadlift) और प्रत्येक एक्सरसाइज के फॉर्म और तकनीक को बेहतर बनाने पर ज़ोर दिया जाना चाहिये।

बच्चों को एक सप्ताह में कितनी बार वर्काउट करना चाहिये?

किसी बच्चे को कितना वर्काउट करना चाहिये, यह बहुत से कारकों पर निर्भर करता है। इन सभी कारकों में एक सबसे मुख्य कारक उम्र या age है।

इसलिये हम बच्चों को कुछ age groups में बाँटेंगे और उन्ही के अनुसार यह देखेंगे कि उन्हे कितना वर्काउट करना चाहिये। यह age groups इस प्रकार है –  6 से 8 वर्ष, 9 से 11 वर्ष और 12 से 15 वर्ष। 

6 से 8 वर्ष : 

इन उम्र के बच्चों को एक हफ्ते में ज्यादा बार वर्काउट नही कराना चाहिये क्योंकि इस समय बच्चों का शारिरीक विकास लगातार होता रहता है, जिसके कारण उनका शरीर वर्काउट से उत्पन्न ज्यादा तनाव या स्ट्रेस सहन नही कर सकता।

इसलिये शुरुआत में इन्हें हफ्ते में दो बार वर्काउट करवाया जा सकता है। क्योंकि इस उम्र के बच्चों का विकास तेज़ी से होता है, जो कि रिकवरी को रोकता है और मात्र दो बार वर्काउट करने से उन्हे रिकवरी करने का पर्याप्त समय मिल जाता है। 

सप्ताह में दो बार वर्काउट करने से वह ओवरट्रेनिंग से बच सकते है, और वर्काउट के सभी लाभ उठा सकते है। इस उम्र के बच्चे किसी चीज़ पर ज्यादा देर तक ध्यान केंद्रित नही कर पाते। इसलिये छोटे बच्चे ज्यादा वर्काउट से बोर भी हो जाते है। 

जब आपको लगे कि बच्चा ज्यादा वर्काउट झेलने के लिये तैयार है, तो धीरे-धीरे इसे सप्ताह में तीन बार तक बढ़ाया जा सकता है। 

9 से 11 वर्ष : 

पहले के मुकाबले इस उम्र में आने पर बच्चों का शरीर थोड़ा ज्यादा मजबूत हो जाता है, जिसके कारण उनका शरीर ज्यादा तनाव झेल सकता है। 

इस उम्र में शारीरक विकास थोड़ा धीमा हो जाता है, जिस कारण वर्काउट के बाद की रिकवरी भी तेज़ी से हो सकती है। इसलिये इन्हे शुरुआत में सप्ताह में दो वर्काउट से चालू किया जा सकता है और कुछ महिनों में सप्ताह में तीन वर्काउट तक लाया जा सकता है।

इस उम्र में कई बच्चे कुछ दुसरे स्पोर्ट्स भी खेलते है, जिससे उनका तनाव भी इनके शरीर पर पड़ता है। इसलिये सप्ताह में तीन बार तक का वर्काउट उनके लिये पर्याप्त है। 

अगर weightlifting या strength training के अलावा बच्चा कोई दुसरा स्पोर्ट नही खेलता है, या फिर उस स्पोर्ट्स में ज्यादा शारिरीक कार्य नही होता, तो इसे सप्ताह में चार बार तक लिया जा सकता है। 

12 से 15 वर्ष :

इस उम्र के बच्चों में यौवनारंभ (puberty) हो जाता है, जिससे उनके शरीर में testosterone जैसे होर्मोन्स बढ़ने लगते है। जिस कारण से इनका शरीर पहले से ज्यादा मजबूत हो जाता है, जिससे यह ज्यादा ट्रेनिंग स्ट्रेस झेल सकता है और जल्दी रिकवर भी हो सकता है। 

इस उम्र में बच्चा यदि कोई अन्य स्पोर्ट्स खेलता है, तो उसकी ट्रेनिंग स्वाभविक रुप से पहले के मुकाबले शारिरीक रुप से कठिन एवं चुनौतीपूर्ण होगी।

जो बच्चे कोई स्पोर्ट्स खेलते है, जो शारिरीक रुप से कठिन हो तो उन्हें सप्ताह में 3 से 4 दिन वर्काउट करना चाहिये। इनके अलावा जो लोग सिर्फ weightlifting या strength training करते है, वे 4 से 5 दिन वर्काउट कर सकते है।

बच्चों का वर्काउट कितना लम्बा और कठिन होना चाहिये ?

यहाँ भी हम बच्चों की उम्र के अनुसार ही वर्काउट की लम्बाई (workout length) और कितना कठिन (workout intensity) होना चाहिये, यह तय करेंगे।

हम यह भली भांति जानते है कि 6 साल के बच्चे को बहुत ज्यादा वजन नही उठाना चाहिये और ठीक उसी प्रकार 13 साल के बच्चे को सिर्फ कुछ pushpus लगाकर नही उठ जाना चाहिये।

किसी भी वर्काउट के फायदे लेने के लिये और उससे होने वाली ओवरट्रेनिंग के नुक्सान से बचने के लिये हम वर्काउट की सही लम्बाई और ईंटेंसिटी पता होना जरुरी है। 

6 से 8 वर्ष :

जैसा कि हम जानते है कि इस उम्र के बच्चे ज्यादा वर्काउट स्त्रेस नही झेल सकते और कुछ बच्चे तो बहुत जल्दी थक जाते है। इसलिये इनकी वर्काउट ईंटेंसिटी कम होनी चाहिये। इनका वर्काउट इस प्रकार का होना चाहिये कि वर्काउट के अंत में यह थोड़ा बहुत थके, बहुत ज्यादा नहीं।

इसके अलावा हम यह भी जानते है कि इस उम्र के बच्चे किसी चीज़ पर ज्यादा देर तक फोकस नही कर पाते है, उनका ध्यान लगतार भटकता रहता है। इसलिये इनके वर्काउट की लम्बाई भी कम होनी चाहिये। 

इनका वर्काउट 10 से 15 मिनिट का होना चाहिये और अगर बच्चा ज्यादा स्ट्रांग है तो 20 मिनिट तक वर्काउट करवाया जा सकता है। यह लम्बाई इसलिये भी उपयुक्त है क्योंकि इस उम्र के बच्चे बहुत ज्यादा तेज़ी से रिकवर नही हो पाते है। 

9 से 11 वर्ष :

इस उम्र के बच्चों का वर्काउट पहले से लम्बा और ईंटेंस हो सकता है क्योंकि इस उम्र के बच्चे पहले के मुकाबले शारिरीक रुप से थोड़े ज्यादा मजबूत हो जाते है और ज्यादा वर्काउट झेल सकते है।

इनका वर्काउट इतना कठिन हो सकता है कि यह अंत में काफ़ी थक जाये और इनके वर्काउट की लम्बाई 10 मिनिट से 30 मिनिट तक हो सकती है। बच्चा जितना ज्यादा फिट और मजबूत होगा यह उसके अनुसार बढ़ाया जा सकता है।

अगर बच्चा कमजोर और अनफिट है तो इसे वर्काउट 10 मिनिट से 15 मिनिट का हो सकता है और अगर वह ज्यादा स्ट्रांग है तो इसे बढ़ाकर 30 मिनिट तक किया जा सकता है। हमेशा यह याद रखे कि बच्चा जितना झेल सके उतना ही वर्काउट बढ़ाए, उनका शरीर अभी इतना भी मजबूत नही है कि इसे इसकी सीमा से बाहर खिंचा जाये।

12 से 15 वर्ष :

इस उम्र के बच्चों का वर्काउट ज्यादा कठिन और लम्बा हो सकता है क्योंकि इनका यौवनारंभ (puberty) हो जाता है, जिससे यह ज्यादा वर्काउट झेल सकते है और जल्दी रिकवर भी हो सकते है।

वर्काउट इतना कठिन हो सकता है कि बच्चा अंत में बहुत ज्यादा थक जाये। लेकिन फिर से यह इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चा कितना ज्यादा फिट और स्ट्रांग है। 

अगर बच्चा कमजोर, अनफिट या ओवरवेट है तो हमें धीरे-धीरे शुरुआत करनी चाहिये और जब वह ज्यादा के लिये कंडीशन हो जाये तो ही वर्काउट ईंटेंसिटी बढ़ायी जानी चाहिये।

इनकी वर्काउट की लम्बाई 20 मिनिट से 40 मिनिट तक हो सकती है और अगर बच्चा ज्यादा फिट है और 14-15 साल का है तो इसे उसकी शारिरीक जरूरत के अनुसार बढ़ाया भी जा सकता है। 

हमेशा यह याद रखें कि भले ही आपके बच्चे की उम्र कितनी भी हो, आपका बच्चा कितना फिट और मजबूत है, इसके आधार पर ही कठिनाई और वर्काउट का समय अलग-अलग होना चाहिये।

यदि आपका बच्चा अनफिट है और अधिक वजन वाला है तो उसे बहुत कठिन से शुरू न करें क्योंकि यह उसे शारिरीक और मानसिक रुप से तोड़ सकता है। यदि आपका बच्चा मजबूत और फिट है तो उसका वर्काउट अधिक लंबा और अधिक कठिन हो सकता है।

बच्चों की डाइट कैसी होनी चाहिये ? 

डाइट और न्यूट्रिशन किसी भी वर्काउट प्लान का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। इसमें कोई शक नही कि बच्चों के लिये भी एक अच्छी न्यूट्रिशनल डाइट का होना बहुत ज्यादा जरूरी है।

इन्हें किसी स्पैशल प्रकार की डाइट की जरूरत नही बल्कि एक संतुलित डाइट की आवश्कता होती है। इनकी डाइट में संतुलित मात्रा में कार्ब्स, प्रोटीन और अच्छे फैट का होना जरुरी है। इसके अलावा डाइट में हरी सब्जिया और फल भी शामिल होना चाहिये, जिससे इन्हे जरुरी माइक्रोन्यूट्रिएन्ट्स भी मिल सके।

 यहाँ एक बात ध्यान रखना जरुरी है कि यह बच्चे “नन्हें बॉडीबिल्डर्स” नही है। बल्कि उनका शारिरीक विकास अभी भी लगातार हो रहा है। इसलिये इन्हें काफ़ी मात्रा में अच्छी क्वालिटी वाले फूड्स की जरूरत होती है।

इनके लिये कोई स्पैशल cutting या bulking वाली डाइट की जरूरत नही है। अगर बच्चा ज्यादा दुबला है तो उसे जरूरत से थोड़ा अधिक खिलाना चाहिये, लेकिन याद रखे कि डाईट न्यूट्रिशनल और अच्छी तरह से संतुलित हो। वजन बढ़ाने के लिये उसे जंक फूड वगेरह ना खिलाए। 

इसी प्रकार बच्चा अगर मोटा है तो उसे जरूरत से थोड़ा कम खाना जरुरी है। इसलिये उसकी डाइट से सारे जंक फूड्स और ज्यादा तला-भुना खाना ही कम करें ना कि जरुरी पोषक तत्व वाला संतुलित आहार।

बच्चों के न्यूट्रिशन और डाइट पर मैं अलग से एक आर्टीकल लिखूंगा। अभी इस विषय पर बात करने से यह आर्टीकल बहुत ज्यादा लम्बा हो जायेगा। इसलिये अगर आप चाहते कि बच्चों के लिये एक स्पेसिफिक डाइट प्लान बनाऊं तो आप नीचे कमेंट्स में बता सकते है।

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